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राष्ट्रभाषा वह होती है जिसमें समूचा देश अपने भावों को शब्दों में ढालता है और हमारे अंदर के भाव व्यक्त करने वाली हमारी मातृ भाषा है हिंदी।
हिंदी को राजभाषा का स्थान 14 सितंबर 1949 मिला , तब से अब तक हम हर वर्ष इस दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के दिन भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाती हैं।
हिंदी के प्रचार के लिए तो 1949 से ही योजनाएं बननी प्रारंभ हो गई थी तब यह कार्य हिंदी प्रचारिणी सभाएं करती थी किंतु आज हम देखते हैं कि हिंदी के प्रचार प्रसार में सबसे अधिक योगदान सोशल मीडिया यानी रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट दे रहा है। सोशल मीडिया भाषा के प्रचार-प्रसार का सबसे शक्तिशाली माध्यम है। इन्हीं माध्यमों के कारण अब सार्वजनिक अभिव्यक्ति भी आसान हो गई है हिंदी ने सोशल मीडिया पर खुद को स्थापित कर लिया है। प्रचार – प्रसार में मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्विटर, फेसबुक , व्हाट्सएप, ब्लॉग आदि प्रमुख है।
सर्वप्रथम हम देखते हैं आज ट्विटर पर हिंदी भाषा का प्रयोग करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है , साथ ही ट्विटर की शब्द सीमा ने अपनी बातें कम से कम शब्दों में रखने का अभ्यास भी करवाया है।
हिंदी के प्रचार में ब्लॉग का भी महत्वपूर्ण योगदान है अनेक हिंदी के ब्लॉग ऐसे हैं जो लोगों द्वारा प्रतिदिन देखे जाते हैं और हिंदी जनमानस तक अपने उत्कृष्ट रूप में पहुंचती है।
आज का युग सोशल मीडिया का है ग्रामीण इलाकों में भी सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ रहा है इसलिए इससे जुड़ना सबके लिए आवश्यक है।
यदि हिंदी साहित्यकारों की बात करें तो हम देखते हैं कि फेसबुक और व्हाट्सएप पर लेखक आपस में अनेक समूहों द्वारा जुड़े हुए हैं वो लिख रहे हैं, एक दूसरे की रचनाएं पढ़ रहे हैं और उन पर अपने विचार अभिव्यक्त कर रहे हैं।
अधिकतर प्रतियोगिताएं भी आजकल ऑनलाइन ही आयोजित की जा रही है , जिसमें साहित्यकार घर बैठे ही पुरस्कार भी प्राप्त कर लेते हैं। पहले ऐसा नहीं था पहले सभी साहित्यकारों को अपनी बात जन-जन तक पहुंचाने में अनेक प्रयत्न करते थे।
कवि अपनी कविताएं यूट्यूब पर भी अपलोड कर जनमानस तक आसानी से पहुंचा रहे हैं।
इंटरनेट ने एक ऐसा संसार बना दिया है इससे दूर रहने वाले व्यक्ति भी आपस में एक दूसरे से जुड़ गए हैं। दुनिया के किसी भी कोने में बसा व्यक्ति अपनी कला से सबको परिचित करवा सकता है।
विज्ञापनों की दुनिया में भी अब हिंदी का ही बोलबाला है अखबार में आने वाले विज्ञापनों को उत्पादनकर्ता हिंदी में ही बनाकर अपना सामान बेच रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि इस तरह वह सहजता से लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकतें हैं।
सरकारी कार्यालयों में भी हिंदी भाषा में कार्य करने हेतु एक मोबाइल एप बनाया गया है जिससे सरकारी कर्मचारी समस्त कार्य सुगमता से कर पाएं।
सोशल मीडिया के जहां इतने फायदे हैं वहां एक नुकसान यह भी है कि इस माध्यम ने भाषा प्रयोग की शैली, व्याकरण एवं वाक्य- रचना को प्रभावित किया है , यह असर नहीं बोलने वाली भाषा पर भी पड़ रहा है। सोशल मीडिया ने अपनी एक अलग भाषा बना रही है जिसमें व्याकरण दोष , अंग्रेजी शब्दों की अधिकता व बोलने की अलग शैली है ‘ इससे एक खिचड़ी भाषा ‘ हिंग्लिश’ पनप रही है जो आज की किशोर पीढ़ी पर अपना प्रभाव छोड़ रही है जबकि हम यह मानते हैं शुद्ध भाषा के बिना चिंतन व ज्ञान मिलना संभव नहीं है क्योंकि यह भाषा लिखने नहीं बोलने पर भी असर डाल रही है।
यह एकाध नकारात्मक प्रभाव छोड़ दें तो हम देखते हैं कि सोशल मीडिया द्वारा किए गए प्रयासों से आज हिंदी आम जन के साथ गहरा संबंध जोड़ चुकी है और सोशल मीडिया ने हिंदी के प्रचार प्रसार में एक अच्छी भूमिका निभाई है।
#नीना महाजन
परिचय-
नाम- नीना महाजन
पता- गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- M.A(हिंदी)
दिल्ली विश्वविद्यालय
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