श्रमिक के श्रम का
कब करोगे सम्मान
जबकि उनके परिश्रम
पर ही टिका है देश का मान।
कल-कारखाने हो
या हो खेत खलिहान
श्रमिक के श्रम बिन
सब बंद और बंजर समान।
सडक रेल या हवाई सफर
श्रम के बिन सब लचर
श्रमिक की तो बात निराली
अपने श्रम से रफ्तार बढा डाली।
इनके त्याग और बलिदानो से
रौनक होते है सारा जहाँ
फिर क्यों भूख और घूप में तपकर
शरीर पर फटे रहते कपडे।
छाले इनके पैरो के
हाथो में भी ठेले है
स्वास्थ्य और कुपोषण
तो ये बचपन से झेले हैं।
दिखता नही फिर भी काम
तपती घूप मे भी न आराम
जीवन से थका हारा
भूख मिटाने निकल जाता बेचारा।
हर सुबह की नई किरणों से
आस जगती है
शाम होते होते
पुनः लौट जाती है
सपनो के महल में भी
भूख और जरूरत नजर आती है।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति