#कल्पना गुप्ताकल्पना रत्न
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महबूब मेरा
छेड़े दिल के तार
रंगों से तूं खेले
करे सोंलह श्रृंगार
रोते को हंसाए तूं
अंधकारों को चीर
सुबह का प्रकाश
लाए तूं, तूं ही नदियों
में सुर ताल छेड़े,समुद्र
में तबला बजाए तूं
गुरुद्वारों से निकले
वीणा की वानी
मंदिरों में घंटियाँ
बजवाए तूं
लहरों से उठती
सरगम की धुन
गेहूँ की बलियां करें
पायल की छम छम
फूलों की महक
रुत में छा जाए
वातावरण में इंद्रधनुषी
रंग छा जाएं
विरहन की तड़प
विरहन की पूकार
महबूब को जगाए
इश्क के शोलों के अंगारों
का सेक, महबूब तक पहुंचाए
महबूब रह ना पाए
इश्क करने वालों के पास
दौड़ा चला आए,दौड़ा चला आए।
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