भारत जैसे जनतांत्रिक देश में इस समय एक पर्व मनाया जा रहा है जिसे आम चुनाव कहते है। इस पर्व का उत्साह तो राजनैतिक लोगों और जनता दोनों में है। किन्तु इस बार यह आम चुनाव कुछ खास है, क्योंकि यहाँ एक तरफ तो सत्ता पक्ष की हाहाकार है तो दूसरी तरफ विपक्ष की भूमिका नगण्य है। असल मायनों में इस बार चुनाव में देश हितार्थ मुद्दों की प्रांसगिकता खो गई है। सच भी यही है कि कोई सेना, मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद पर चुनाव लड़ रहा है तो कोई राफेल, चौकीदार चौर और हिन्दू होने के प्रमाण तक ही सीमित हो गया है। आखिर इन सब बावजूद भारतीय और राष्ट्र का सर्वांगणीय विकास, प्रगति, व्यापार, बढ़ती बेरोजगारी, आंतरिक सुरक्षा, देश का अर्थशास्त्र और विकसित राष्ट्र की तरफ बढ़ते क़दमों का थम जाना को दिखाई नहीं दे रहा।
सत्ता पक्ष के पास चेहरा है जिसे भुनाया भी गया और इस बार भी वही चेहरा जनता के बीच ले जाया गया किन्तु इस मामले में विपक्ष थोड़ा कमजोर सिद्ध हो गया, उनके पास जो चेहरा है वही जनता की नापसन्दगी का कारण है। परन्तु क्या वर्तमान में राजनीती का मकसद केवल सत्ता हथियाना ही शेष रह गया है?
राम मंदिर, धारा ३७०, चौकीदार चोर, राफेल घोटाला या साध्वी का बयान, स्त्री के अंतवस्त्र का रंग ऐसे ही मुद्दों के बीच देश की असल समस्या और मुद्दे गौण हो चुके है। जनता के बीच मत मांगने जाने वाले प्रत्याशी भी इस बात का सही जवाब नहीं दे पा रहे है कि वो किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे है या जीत गए तो क्या करेंगे देश के लिए।
हर पांच वर्षों में एक बार आए इस लोकतंत्र के महापर्व में जनता सहभागिता को जताना चाहती है किन्तु वही जनता चुनाव के बाद ठगी हुई सी रह जाती है और मलाल के सिवा जनता के हाथ कुछ नहीं बचता। लोकतंत्रीय गरिमा में सवाल पूछने का अधिकार जनता के पास भी होता है। किन्तु इस बार इसमें भी वह चूक गई, क्योंकि जवाब मौन है। राजनीती का सूर्य अस्तांचल की तरफ बढ़ने लगा है क्योंकि जनता की उपेक्षा और प्रगति का आधार खोखला होता जा रहा है।
अमरीकी चुनाव का आंकलन करें तो पाएंगे कि वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों से चुनाव लड़ने के समय ही जनता पूछती है कि क्यों चुने आपको ? आपके पास देश की उन्नति के लिए क्या योजना है? कैसे आप वर्तमान समस्याओं पर काबू करेंगे ? कैसे आप राष्ट्र का सम्पूर्ण विकास करेंगे? आपकी रक्षा नीति क्या है? विदेश नीति और अर्थनीति का आधार क्या है? आर्थिक सशक्तिकरण के लिए क्या ब्लूप्रिंट है? इन सवालों के जवाब के बाद ही जनता तय करती है कि कौन राष्ट्रपति बनेगा अमरीका का। इसके उलट हमारे देश में मुफ्तखोरी की योजनाएं, ७२००० वार्षिक घर बैठे जैसे वादों और १५ लाख जैसे जुमलों में ही चुनाव परिणाम आ जाता है। थोड़ा आगे बड़े तो अगड़ी-पिछड़ी जाति, कुल-कुनबे में ही मतदान हो जाता है। आखिर किस दिशा में जा रहा है हमारा राष्ट्र?
इन सब के पीछे शिक्षा का गिरता स्तर भी उतना ही उत्तरदायी है जितना की राष्ट्र का माहौल। इस बार चुनावों में जनता भी नीरसता का अनुभव कर रही है क्योंकि राष्ट्र मुद्दा विहीन चुनाव झेल रहा है।
आमचुनाव में किसी भी राजनैतिक दल के पास कोई ब्लूप्रिंट नज़र नहीं आ रहा जो देश की प्रगति का मापक तय कर सके। किसी के पास कोई विदेशनीति, वित्तनीति, रक्षानीति जैसे गंभीर चयन का कोई आधार नहीं है। न तो सत्ताधारी दल इस पर कुछ बोल रहा है न ही विपक्ष की तरफ से कोई पहल। क्या ऐसे ही देश क्षणे-क्षणे अवनति के मार्ग को चुनेगा ?
स्तरहीन बयानबाजी, कमर के नीचे की राजनीती और परियोजना रहित घोषणपत्र वर्तमान में राजनीती का चेहरा बन चुका है। इसी तरह देश चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत वैश्विक पटल पर हासिल अपने सम्मान को खो देगा
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।