रंगीन बसंत 

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vani barthakur
अब चारों ओर
महक रहा है
आया रंगीन बसंत
बसंती तगर फूल
खुश्बू हवा संग
गगन चूम रहा
बरदैचिला बावली सी
उड़ कर
महकाती गई
बिखेरकर नव सुगंध
पतझर के बाद
डालियों पर
बसंत की हरियाली
गुलमोहर भी
खिलकर मुस्कुराने लगी
लेकर बैशाखी की
स्नेह भरी मादकता ।
गा रही कोयल ,चकवा भी
मधुर सरगम
कहीं ढोल की गुमगुम
पेपा भी गुनगुना रहा
आतुर यौवन मन ।
रंगीन अब ये धरा
सज रही दुल्हन सी
मेरी असमी माँ
अब समय है
स्वागत नया साल का
रंगाली बिहु संग है
ताल ताल पर
नाचना और गाना ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में  शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है। 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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