शहर-दर-शहर ग़ज़ल को लेकर डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ की ‘अहद’ प्रकाश से बातचीत
अर्पण: शहर-दर-शहर ग़ज़ल की प्रेरणा आपको कैसे मिली?
अहद प्रकाश: डॉ. बशीर बद्र हमारे प्रेरणा स्रोत रहे। आज वह हर आम-ओ-ख़ास हिन्दुस्तानी जबान के चाहने वालों की चाहत हैं। शहर-दर-शहर ग़ज़ल प्रोग्राम की शुरुआत भी हमने डॉ. बशीर बद्र की ग़ज़लों की गायकी से की। उनका कहना था कि शहर के चुनिन्दा शायरों को खूबसूरत तरीके से पेश किया जाना चाहिए। तो उनकी ही प्रेरणा से हमने कार्यक्रमों की शुरुआत की।
• इसके माध्यम से आप दरअस्ल चाहते क्या हैं?
शहर-दर-शहर ग़ज़ल के जरिए हम किसी भी शहर के चुनिन्दा शायरों के कलाम को संगीत और गायकी के माध्यम से पेश करते हैं। हम ऐसे शायरों को चुनते हैं जिन्होंने अपनी शायरी के जरिए पूरे मुल्क और समाज को अम्नोमोहब्बत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया है और अपनी ज़िन्दगी अदब और शायरी को वक्फ कर दी है। हम शहर वालों को उनकी शायरी और उपलब्धियों के बारे में भी बताते हैं। शायरी ख़ासतौर से ग़ज़ल को लेकर हम लोग काम कर रहे
• उर्दू के बारे में आप कैसा सोचते हैं?
-उर्दू हमारे मुल्क में एकता और सदभाव की जबान है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक बोली और समझी जाती है। उर का मतलब होता है दिल और दू का मतलब सामने वाला जिसको हम संबोधित कर रहे हैं। यानी उर्दू दो दिलों की मोहब्बत भरी जबान है। यह प्यार की ज़बान है। अम्न और एक दूसरे को जोड़ने की ज़बान है। हिन्दी और उर्दू में हम फ़र्क नहीं मानते इसलिए हमारा सोचना है। उर्दू, हिन्दी एक जबान, जिससे महके हिन्दुस्तान ।।
• क्या उर्दू के जरिए मुल्क में एकता और सद्भाव का माहौल पैदा किया जा सकता है?
# आज मुल्क को भाषाई समन्वय की सबसे ज्यादा जरूरत है। उर्दू और खासतौर से गजल के जरिए हम मुल्क में यकजहती और प्यार की गंगा-जमनी शहर-दर-शहर ग़ज़ल तहज़ीब को प्रचारित कर सकते हैं। अगर कोई भी काम दिल से किया जाए तो उसके परिणाम हमें अच्छे ही प्राप्त होंगे। उर्दू के जरिए पूरे मुल्क में सद्भाव और प्रेम का वातावरण पैदा होगा, ऐसा हमारा यक़ीन है। यह मिशन हमारे जीवन का ध्येय है । शहर-दर-शहर ग़ज़ल के माध्यम से हम इसे साकार करना चाहते हैं।
• उर्दू और हिन्दी यानी हिन्दुस्तानी जवान के जरिये शहर-दर-शहर ग़ज़ल के कार्यक्रम आप किस तरह तकमील तक पहुँचाते हैं?
आपसी समन्वय, बेहतर तालमेल और एकदूसरे से जुड़कर हम इन कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाते हैं। एक शहर को चुनते हैं वहां के शायरों के बारे में उनकी उपलब्धियों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। वहाँ के प्रबुद्ध और साहित्य प्रेमियों की मदद से हम इन कार्यक्रमों को साकार रूप देते हैं। हमारे कार्यक्रमों में संगीत गायकी और शायरी का खूबसूरत समन्वय आप देख सकते हैं । हमारा विश्वास है जो लोग बेहतर करते हैं उनकी मदद ईश्वर करता है।
• आपको लगता है शहर-दर-शहर ग़ज़ल की पूरे हिन्दुस्तान में पजीराई संभव हो सकेगी?
– अभी तक हम 15 बड़े शहरों में दोस्तों और अदब नवाज़ मित्रों की मदद से कार्यक्रम कर चुके हैं। इन शहरों में भोपाल, इन्दौर, ग्वालियर, लखनऊ, कोटा, जोधपुर, जयपुर, कोलकाता, मुम्बई, चन्द्रपुर, बड़ौदा, अहमदाबाद, जबलपुर, आगरा और दिल्ली जैसे शहरों में हमें और हमारे कार्यक्रमों को खूब पज़ीराई मिली है। उम्मीद है हम आगे भी कामयाब रहेंगे क्योंकि हमारा उद्देश्य पैसा कमाना नहीं है, बल्कि अच्छी शायरी, अच्छी ग़ज़लों को श्रोताओं तक पहुँचाना है। और ताज़िन्दगी ग़ज़ल को समर्पित शायरों को अवाम तक पहुँचाना है। हमारे काम को देखकर मुस्लिम सलीम साहब लिखते हैं – अब्र उलफ़त का जब भी नमूदार हो बूंदा-बाँदी नहीं मूसलाधार हो सारी दुनिया में फूलों की बौछार हो जिस तरफ देखिए प्यार ही प्यार हो
० क्या आप पुराने शायरों को भी शहर-दर-शहर ग़ज़ल में शामिल करते
-उर्दू अदब के मायानाज़ शायरों जैसे मीर, ग़ालिब, दाग़ को भी हमने गायकी और संगीत के ज़रिये अवाम तक पहुँचाया है। ग़ज़ल ऐसी विधा है जो अवाम में बहुत मक़बूल है। हमारे पास अदब का जो ख़ज़ाना है उसमें से मोती निकालकर लाना बहुत मुश्किल है। अच्छी ग़ज़लों का सिलेक्शन उनको संगीतबद्ध करना और नए अंदाज़ से प्रस्तुत करना शशांक की गायकी और इस कार्यक्रम के उसके समर्पण से ही संभव हो सका है। वह ग़ज़ल गायकी में घंटो रियाज करता है। उनका संगीत तैयार करता है फिर उन्हें शायक़ीन के सामने पेश करता है। बड़े-बड़े शायरों, अदब नवाज़ लोगों का उसे आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। भोपाल में हमने दो बड़े कार्यक्रम किए थे। एक यहाँ के स्थानीय शायरों को लेकर और दूसरा यहाँ की शायरात को लेकर, जो बहुत मक़बूल हुए।
• क्या आपसे स्वेच्छा से लोग जुड़ते हैं?
जो लोग अदब से मोहब्बत करते हैं शायरी ख़ासतौर से ग़ज़ल से मोहब्बत करते हैं वह स्वयं ही हमसे जुड़ते ही हमारी हर मुम्किन मदद करते हैं। हमारा मानना है कि सफ़र है शर्त मुसाफ़िर नवाज बहुतेरे । हजारहा शजर सायादार राह में हैं। चलिए तो सही अच्छे लोग अच्छे कामों के लिए तैयार मिलेंगे।
• आपको लगता है इस तरह के आयोजन साहित्य, कला संगीत और आपसी मेल-जोल और सद्भाव के प्रति रचनात्मक, सकारात्मक माहौल बनाने में सार्थक होंगे?
बिल्कुल ऐसे ही कार्यक्रमों के जरिये हम पूरे देश को एकता और संस्कृति से जोड़ सकते हैं क्योंकि हमारी गंगा जमनी तहज़ीब उर्दू और हिन्दी के समन्वय से ही आगे बढ़ेगी। हम पूरी ईमानदारी ओर निष्ठा के साथ साहित्य, कला, संगीत और सामाजिक सौहार्द के लिए काम कर रहे हैं। ।
*नए ग़ज़लकारों के आपको संदेश?
खूब अच्छा लिखें, ऐसे लिखें जो समाज और देश को ऊँचाइयाँ दे सके। एकता और सद्भाव का माहौल बना सके। प्रेमचंद, फैज़ अहमद फैज़, टैगोर हमारे आदर्श हैं जो हिन्दुस्तानी समाज को दुनिया का आला और खूबसूरत समाज बनाने के पक्षधर थे।
*शशांक हाड़ा के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे
उनमें संप्रेषणता का गुण है। उर्दू में ऐसे बहुत सारे शायर हैं जिन्होंने अपनी तर्जे बयानी से हमारे दिलों को छुआ है। ऐसे बेहतरीन और मौलिक शायरों की ग़ज़लों का शशांक ने अपनी मासूम और मख़मली आवाज़ से और भी खूबसूरत बना दिया है। यह नसीब की बात है कि शशांक थाड़ा को डॉ. बशीर बद्र’ साहब का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। गायकी के शुरुआती दौर में शशांक ने डॉ. बशीर बद्र’ साहब की ग़ज़लों से ही अपने कार्यक्रमों का श्रीगणेश किया था। शायद इन जैसे फ़नकारों के लिए ही डॉ. बशीर बद्र’ साहब ने यह शेर लिखा है:
सुबह दम कौन मेरी पलकों पर
आसमानों के फूल रखता है।
मैं इनकी कामयाबी के लिए दुआ करता हूँ।