सुबह के छः बजे हैं। कल सरकारी छुट्टी थी तो मैं बेटी और बेटे को मेले घुमाने ले गया था,इसलिये सभी को रात को सोने में देर हो गई थी।
श्रीमती जी खुद सुबह ५ बजे उठकर सभी के टिफिन बनाकर तैयार कर चुकी हैं। फिर भी घर में सुबह के बहुत सारे काम बाक़ी पड़े है-झाड़ू,पोंछा, चाय और सैकड़ों काम।
मेरी माताजी भी अपनी दिनचर्या के अनुसार सुबह जल्दी उठ चुकी हैं और जितना हो सकता है उतना काम निपटाने में मदद कर रही हैं। इस प्रक्रिया में वे हम सभी को देर से सोकर उठने के लिए डांट भी लगाती जा रही हैं। माहौल थोड़ा तनावपूर्ण हो चला है। श्रीमती जी बेटी को स्कूल जाने के लिए उठा रही है,लेकिन उसकी आँखे नींद से भरी हैं और वह और थोड़ी देर सोना चाहती है। बड़ी कठिनाई से वो उठी और थोड़ी देर बिस्तर में आँखें बंद कर बैठी रही। यह देखकर मैंने,उसकी मम्मी ने और उसकी दादी ने उसे फिर से डांट लगाईं । कुछ डर,कुछ जबरदस्ती और बड़ी मान-मनोव्वल के बाद वह जैसे-तैसे तैयार हुई,लेकिन फिर भी उसकी टॉयलेट बाकी है क्योंकि उसकी बॉयोलॉजिकल घड़ी के अनुसार उसे ९ बजे प्रेशर आता है,जब वह अपनी क्लास में होती है। उसे रोज़ फ्रेश होने स्कूल के टॉयलेट (उसे गन्दा लगता है)में जाना पड़ता है,जहां शायद स्कूल की चपरासी आंटी उसे डांटती है। कई बार वह डर या शर्म के मारे बताती नहीं है और दोपहर को घर आने के बाद फ्रेश होने जाती है।
स्कूल वैन घर के सामने खड़ी है,और असलम चाचा आवाज़ लगाकर बेटी को बुला रहे हैं-अमृता,जल्दी चलो, देर हो रही है। श्रीमती जी ने जल्दी से उसका हाथ पकड़कर बाहर खड़ा किया ही था कि पता चला, इस भागम भाग में उसका टिफिन किचन में ही छूट गया। श्रीमती जी दौड़ी और जल्दी से टिफिन और पानी की बोतल उसे पकड़ाई और वेन में बैठाया। आज बच्चे बहुत कम थे,क्योंकि कश्मीर में हुई ताज़ा बर्फ़बारी के कारण सुबह ठण्ड थोड़ी बढ़ गई थी।
बेटी जैसे ही वेन में बैठी,उसका चेहरा रुआंसा हो गया। रोने लगी और रोते- रोते गाड़ी से उतर गई, बोली-‘पापा मुझे स्कूल नही जाना’। इतना सुनते ही वेन वाले चाचा ने तुरंत गाड़ी आगे बढ़ा दी। अब उसके दादा जी भी मैदान में आ गए और उन्होंने भी उसे डांट लगा दी। उसकी मम्मी ने बीच- बचाव कर उसे गोद में लिया। फ़िर प्यार किया,उसके बड़े भाई के और साथ ही दूसरे बच्चों के उदाहरण दिए,स्कूल जाने के फायदे गिनाए, कहानी सुनाई और चॉकलेट दिलाने का वादा कर उसे दोबारा स्कूल जाने के लिए मनाया। मुझसे बोली कि, आपको पापा छोड़ने जाएंगे तो इसे भी स्कूल छोड़ देंगे,लेकिन मैं तो पहले ही उसको डांटने के अपराध-बोध से परेशान था और साथ ही उन सभी से नाराज़ भी था जिन्होंने उसे डांटा था। तब मैंने अपने पिता होने के विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए घोषणा कर दी कि,वो आज स्कूल नहीं जाएगी। यह सुनते ही बेटी के आंसूओं से भरे चेहरे पर एक प्यारी मुस्कान तैर गई। उस मुस्कान ने मुझे मेरे अपराध-बोध से मुक्त कर दिया।
फिर वो मुझे अपने दादाजी के साथ बस स्टैंड तक छोड़ने आई और टाटा करते समय मुझे गाल पर एक प्यारी- सी पप्पी देते हुए मुझसे लिपट गई और धीरे से मेरे कान में बोली-‘पापा मुझे रोज़ आपकी बहुत याद आती है। आप जल्दी आना’। मैंने हमेशा की तरह उसे हाँ कहा और अपनी नौकरी पर जाने के लिए बस में अपनी सीट पर चुपचाप बैठ गया और वो अपने दादाजी के साथ घर चली गई। पुनःश्च-मेरी बेटी केवल साढ़े चार साल की है।
#सुनील देशपांडे
परिचय : सुनील देशपांडे इंदौर में ही रहते हैं।पेशे से आप शिक्षक हैं तथा कई विषयों पर कलम चलाते रहते हैं।