दीपक से हमने सीखा, जलना क्या होता है ।
तिल-तिल जल-जल करके, ऐसे मरना क्या होता है ।
दीपक सबको देती उजाला, खुद अधियारों में रहकर ।
सीख लो उससे जीना तुम भी, दुःख सहना होता है क्या ?
विरह व्यथा होती बड़ी दारूढ़, सहनाही पड़ता है ।
अपनों के खातिर अपने को, जलना ही होता है ।
क्या जाने इस राह पर हमको, छोड़के ऐसे जाओगे ।
कैसे तुम्हें बता दू मैं ये,जी नहीं हम पायेगें ।
कीट–पतंगे सीखा दिये मुझे, एक-दूजे के लिये मर जाओ ।
प्यार तुम्हारा सच्चा है तो, अपनों के लिए कुछ कर जाओ ।
सहना मुश्किल होता बड़ा है, जो सह ले उसकी तारीफ ।
दीपक जैसी सहन शक्ति रहे,कीटपतंगों जैसी रीति ।
चाह के खातिर जीते है हम, और बिछड़कर मर जाना ।
दीया बाती से सीखोंहरदम, एक दुसरे के लिए जल जाना ।
बड़ा कठिन यह बड़ा है मुश्किल, कैसे इसे अपनाओगे ।
इस जग में नहीं कोई ऐसा, जो तुमको समझ पायेगें ।
दीपक देता जहां उजाला, खुशहाली छा जाती है ।
दूजों को खुश करने में, अपना बलिदान चढ़ाती है ।
मरके भी जीना सीखों, कुछ काम यहां कर जाओं तुम ।
जीनें पर नहीं याद करेगें, मरने पर याद आओगे तुम ।
परिचय-
नाम -डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई(महाराष्ट्र)
जन्म स्थान – जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा – एम.ए., पीएच-डी.
कार्यक्षेत्र – स्वच्छंद लेखनकार्य
लेखन विधा – गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।
कोई प्रकाशन संग्रह / किताब – दो साझा काव्य संग्रह ।
रचना प्रकाशन – मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।
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काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।
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कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।
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दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।
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अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।