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पृथ्वी की प्राचीनतम् महिमा के साथ रहने वाले भारतवर्ष की जाति-जनजाति के वैशिष्ट्य, विभाग और संख्या को लेकर महान पण्डितों के बीच में मतभेद परिलक्षित होता है। संस्कृत साहित्य में निषाद, शवर, पुलिन्द, भिल्ल और कोल्ल इत्यादी नाम से अष्ट्रिक गोष्ठीय जनजाति के उल्लेख हैंं । आर्य लोगों ने द्राविड़ी भाषा-भाषी को शायद दास, दस्यु नाम से अभिहीत किया था। किरात नाम देकर व्यापक रूप से मंगोलिया लोगों को समझाया गया है । खुद को आर्य नाम देनेवाले इस नर्द्दिक जाति के लोगों ने किसी समय में एक जनजाति के रूप में भारत के बाहर रहते थे और बाद में दलों में बारी बारी से भारत में प्रवेश किया होगा। डाक्टर सुनीति कुमार चट्टोपाध्याय का कहना है कि किसी काल में नर्द्दिक आर्य लोग असभ्य जनजाति थे । प्राचीन तमिल साहित्य के अनुसार भारत के लोगों को चार भागों में बांटे थे , जैसे- कुरव अथवा कुन्तवार, आयार, मारुथमवासी और भारथवार ।
जातिगत और भाषागत विभाग एक नहीं है । कभी कभी देखा जाता है कि दोनों भागों की परिभाषा सम्मिश्रण होकर विकृत भाव सृष्टि होता हुआ दिखाई देता है। आर्य, द्रविड, कोल, मुण्डा, तिब्बत-धर्मी आदि भाषा का नाम है। नेग्रितो , अष्ट्रलयद् , मंगलयद् , नर्द्दिक इत्यादि जातियाँ हैं ।
डेल्टन, स्कमिड्ट, रिज्ली आदि विदेशी पण्डितों के अभिमतों को मद्देनजर रखते हुए भारत तथा असम के जनजाति के लिए वी.एस.गुह के अभिमत को डाॅक्टर सुनीति कुमार चट्टोपाध्याय द्वारा समर्थित भारत की जाति को छः भागों में बांटा गया, १/नेग्रितो जाति ,२/ प्रट-अष्ट्रलयद, ३/मंगलयद्, ४/ मेडिटेरानियान , ५/ वेस्टर्न ब्रेकीचेफाल और ६/ नर्द्दिक ।
पण्डितों के कहना है कि नेग्रितो जाति पूर्वोत्तर भारत के नागा जनजाति और दक्षिण भारत के कई जंगली जनजाति के पूर्वज हैं। ठीक उसी तरह प्रट-अष्ट्रलयद जाति , अष्ट्रिक भाषी कोल-मुण्डा , चाउताल, इत्यादि और असम के प्रधानतः खासी और जयन्तीया लोगों के पूर्वज हैं । यजुर्वेद , महाभारत, रामायण आदि में उल्लेख है कि मंगलयद् जाति ही किरात जाति है । सिर्फ यहीं नहीं योगिनी तंत्र और कालिका पुराण में भी लिखित है कि प्राचीन कामरूप धर्म कैरातज और पूर्वोत्तर अंचल किरात भूमि है । असम के जनजाति लोगों में से अधिकतम लोग मंगलयद जाति के अन्तर्गत हैं । चीन-तिब्बतीय और तिब्बत-वर्मी भाषा-भाषी के साथ भारतीय जाति के साथ मंगलयद् जाति के वैशिष्ट्य के मेल हैं । खासी और जयन्तीया भाषा-भाषी लोगों में मंगलयद जाति के खून के नमूने पाए गए हैं । बड़ो, डिमासा, लालुंग , सोणोवाल काछारी , राभा , गारो, मिछिंग , मिकिर आदि जनजाति को पण्डितों ने निःसंदेह मंगलयद जाति में स्थान दिया है। मेडिटेरानियान जाति के अंतर्गत द्राविड़ी भाषा-भाषी के लोगों को माना गया है । भारतीय समाज-संस्कृति में द्राविड़ी लोगों के दान सर्वजन स्वीकृत हैं । असम के चाय बागानों के मजदूरों में प्रट-अष्ट्रलयद और मेडिटेरानियान जाति के भिन्न भाषा-भाषी और रीति रिवाज की जनजाति हैं । वेस्टर्न ब्रेकीचेफाल के लोग मेडिटेरानियान और नर्द्दिक लोगों के तरह पश्चिमी तरफ से भारत में आए थे । गुजरात, महाराष्ट्र और बंगदेश में इस जाति के लोग हैं, लेकिन इनके साथ द्रविड़ी और आर्य भाषी के साथ मिश्रित होकर अपनी विशिष्टता खोकर एक नया रूप लिए हैं । नर्द्दिक जाति (प्रकृत आर्य) , प्रागैतिहासिक काल में ही पश्चिम गिरिपथ से भारत में प्रवेश की । वर्तमान में चिन्हित किया है कि नर्द्दिक लोग पहले उड़ाल पर्वत के दक्षिणी तरफ के यूरेशिया उपत्यका हैं । ये छः जाति के लोग वर्तमान भारत में जाति-जनजाति के रूप में रह रहे हैं ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।
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