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ये धुँध छँट जाए तो फिर चेहरा देखना
धूप सेंकता हुआ कोई चाँद सुनहरा देखना
उनसे मिल आईं तो हवा ये बतियाती हैं
गर्म चाय की प्याली में ढ़लता कोहरा देखना
निकलो तुम जो कभी अलसाये सवेरों में
ओंस से अपने बदन धोते हुए पेड़ हरा देखना
रखना गर ख्वाहिश कभी तो ऊँची ही रखना
हुश्न ही नहीं,हुश्न का हुनर भी गहरा देखना
जो आँख खुल जाए कभी आधी रातों में
बेटी के सिरहाने में परियों का पहरा देखना
ये तमाशा रोज यहाँ होता है,तुम भी देखना
लाउडस्पीकरों की बस्ती में हर कोई बहरा देखना
लगता है कि कोई नई जिंदगी तामील होगी
घर के मुँडेरों पर कोई कबूतर ठहरा देखना
सरहद के उस पार भी इंसान ही बसते हैं
हो यकीन तो कभी खुशी से हाथ लहरा देखना
#सलिल सरोज
परिचय : सलिल सरोज जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।पंजाब केसरी ई अखबार ,वेब दुनिया ई अखबार, नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स, दैनिक भास्कर ब्लॉग्स,दैनिक जागरण ब्लॉग्स, जय विजय पत्रिका, हिंदुस्तान पटनानामा,सरिता पत्रिका,अमर उजाला काव्य डेस्क समेत 30 से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में मेरी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। भोपाल स्थित आरुषि फॉउंडेशन के द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम 20 में स्थान। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित।
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