विधाता ने पहली बार किसी बेटी को बनाया होगा,
मानव निर्माण के लिए धरती पर छोड़ने आया होगा।
उस दिन विधाता भी सारी रात नहीं सोया होगा,
बेटी की जुदाई में पूरी रात खूब रोया होगा।
कई जन्मों के पुण्योदय से बेटी का जन्म होता है,
इसीलिए कन्यादान बहुत बड़ा धर्म होता है।
बेटी पिता,पति दोनों घरों का मान रखती है,
चाहे कलेजे पर पत्थर पड़े हों,चेहरे पर मुस्कान रखती है।
बेटी की आत्मा से सिर्फ दुआओं के फूल बरसते हैं,
राखी के कच्चे धागे भाई की कलाई को तरसते हैं।
माँ-बाप के खलल से बेटी के ख्वाब अधूरे रहते हैं,
बेटी की नजर में माँ-बाप बुरे नहीं होते हैं।
दिल में चाहे गम हो,चेहरे पर खुशी की लहर होती है,
कठोर दिल बाप भी रो पड़ता है,जब विदाई बेटी की होती है।
हे ईश्वर,मेरा तो बस इतना ही है कहना ,
कुछ दे न दे,पर हर घर में एक बेटी जरुर देना।
#प्रमोद बाफना
परिचय :प्रमोद कुमार बाफना दुधालिया(झालावाड़ ,राजस्थान) में रहते हैं।आपकी रुचि कविता लेखन में है। वर्तमान में श्री महावीर जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय(बड़ौद) में हिन्दी अध्यापन का कार्य करते हैं। हाल ही में आपने कविता लेखन प्रारंभ किया है।