फिल्म 2.0 की समीक्षा को लेकर आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूं । यह फिल्म देखने के बाद मेरे मन में आया की, इस फ़िल्म के बारे में आप लोगों से बात किया जाय । फ़िल्म समीक्षा करने से पहले हम तनिक इस बात पर गौर करें की ,कोई भी सिनेमा,समाज का दर्पण होता है, एक कथाकार कहानी लिखता है ,उस पर फिल्म बनती है ,और फिल्म से समाज प्रभावित होता है ।तो कथाकार की ज़िम्मेदारी होती है कि समाज मे सकारात्मक संदेश प्रेषित करे ।
सबसे पहले विषय वस्तु –
यह फ़िल्म घटना और समस्यप्रधान फ़िल्म है विषय वस्तु की बात कर लेते हैं निश्चित रूप से यह फिल्म हिंदुस्तान के इतिहास में ऐतिहासिक फिल्म है ,यह फिल्म आत्मा व विज्ञान का मिश्रण है, कुछ लोग इसे काल्पनिक विज्ञान पर आधारित फिल्म का दर्जा देते हैं, जो बहुत हद तक सही भी है । इस फिल्म को बनाने में निर्माता -अली राजा ,सुभाष चरण ,राजू महा लिंगम ,रहे हैं। इस कहानी को लिखने वाले शंकर और जय मोहन है ,गभग 500 करोड़ रुपयों से ज्यादा की यह फिल्म है।यह हिंदुस्तान की दूसरी सबसे बड़ी फिल्म है ,कहानी कुछ प्रासंगिक ली गई है । कलाकार – कास्ट में मुख्य भूमिका के रूप में सुपरस्टार रजनीकांत ,अक्षय कुमार, एमी जैकसन रहे हैं । जिनके अभिनय क्षमता के बारे में यद्यपि कोई राय बनाने की आवश्यकता नहीं है सभी अत्यंत मझे एवम सुलझे हुए कलाकार हैं ।
रोबोट के बाद रजनीकांत के चिट्ठी और 2.0 के किरदार में बहुत समानता नहीं थी ,हां निश्चित रूप से अक्षय कुमार का जो किरदार था, पक्षी जगत के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने की सामाजिक पहल को स्वागत करने योग्य है। मोबाइल टावर की वजह से पक्षी जगत खतरे में है ,और शोधात्मक दृष्टि से यह फिल्म एक नई दृष्टि यह भी देता है कि ,मनुष्य बिना पक्षियों के जीवित नहीं रह सकता ,क्योंकि पक्षी जिन कीड़े- मकोड़ों को खाते हैं उनकी संख्या मनुष्यों से कई गुना तीव्र गति से वृद्धि होती है ,यदि पक्षी नहीं होंगे तो उन कीड़े मकोड़ों का आतंक मनुष्य जाति को ही नष्ट कर देगा । कुछ स्वार्थी तत्व अपने आर्थिक स्वार्थ के लिए मोबाइल टावर्स का और मोबाइल से निकलनेवाले हानिकारक किरणों को नज़रअंदाज़ करते हैं ,जिससे पक्षियों को बड़ी संख्या में मौत के घाट उतार रहे है, यह 2.0 का कथ्य है ,कहानी है ।
थोड़ी सी तकनीकी की अगर हम बात करें तो ,विज्ञान ने वीएफएक्स तकनीकी का भारी मात्रा में प्रयोग किया है 3D कैमरे के माध्यम से यह फिल्म सीधे ही थिएटर में 3D के रूप में उपस्थित हुई है। 3D कैमरा और वीएफएक्स का भार श्रीनिवास मोहन ने किया है ,जिसने पहले भी बाहुबली में वीएफएक्स का चमत्कार दिखाया था ,
2.0 फ़िल्म का कमज़ोर पक्ष
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मुझे इस फिल्म में कमजोर कड़ी के रूप में (1) फ़िल्म की संवाद शैली लगी क्योंकि संवाद शैली किसी भी कहानी की, किसी भी फिल्म की ,गद्य के विभिन्न विधाओं नाटक,एकांकी,कहानी,उपन्यास,आदि का मूल तत्व होता है संवाद शैली फिल्म को जीवंत करता है, यहां तकनीकी प्रयोग के कारण संवाद शैली की मृत्यु हुई है ,फ़िल्म में ऐसा कोई डायलॉग निखर कर सामने नहीं आया जिसे दर्शक अपने साथ ज़हन में ले जा सकते थे ,जबकि अक्षय कुमार का रोल सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही था ,वहां बहुत अच्छे संवाद गढ़े जा सकते थे,..
2) दूसरी कमी संगीत की ए. आर.रहमान जैसे संगीत निर्देश को फ़िल्म में जगह देने के बाद भी एक भी गाना नहीं,गीत विहीन फ़िल्म? यह बात फ़िल्म में बहुत आखरी फ़िल्म के अंत मैं गीत का इंतज़ार करता ही रह गया ,फ़िल्म के अंत मे गाना देने का औचित्य समझ में नहीं आया ….
खैर प्रासंगिकता कि यदि बात करूं मैं तो यह फिल्म पूरी तरीके से खरी उतरती है ,शायद इस फिल्म में पहली बार सम -सामयिक घटना समस्या पर बात करते हुए शोधात्मक दृष्टि से बताया गया कि अमेरिका में ,…जो दुनिया का सबसे सबसे शक्तिशाली राज्य है.. वहां सिर्फ दो या तीन मोबाइल टावर है ,चीन दुनिया का सबसे बड़ा देश जनसंख्या की दृष्टि से है, वहां भी सिर्फ दो या तीन मोबाइल टावर हैं ,वे अपनी प्रकृति अपने जीव जगत के प्रति बहुत सजग है वही हम भारत के लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में पड़कर रूपया कमाने की अंधी दौड़,के कारण हमारे वातावरण को दूषित कर रहे हैं जीवन के आधार पशु-पक्षियों ,पर्यावरण की परवाह किये बिना एक विनाश को न्योता दे रहे है,पक्षी जगत मोबाइल से निकलने वाले दुसित तरंगों से भ्रमित होकर भारी संख्या में अपने प्राण त्याग रहे हैं ,आने वाली पीढ़ियों में इनके दुष्परिणाम दिख जाएंगे ।
यह फिल्म एक साथ 14 भाषाओं में डब की गई है, अगर मैं यह कहूं कि यह फिल्म 1या 2 बार देखा जा सकता है…यद्यपि किसी भी फ़िल्म को बार बार देखने की इच्छा इसलिए होती है क्योंकि उसमें मन मे व्याप्त सभी 11 के 11 रस समय समय पर कथ्य में गुथे जोते है ..इसमे पूरी फिल्म में मैने सभी रस ढूंढने के प्रयास किया..वीर,वीभत्स,भयानक,थोड़ा शृंगार,हास्य,करुणा,आश्चर्य,तो रहा पर वात्सल्य,भक्ति,शान्त का नितांत अभाव रहा..संगीत न होना एक सहृदयी को अखरता रहा….बहरहाल फ़िल्म युवा और किशोर को बहुत उत्तेजित करेगी …
#डॉ.अवधेश कुमार जौहरी
परिचय-
मेरा नाम डॉ अवधेश कुमार जौहरी, आचार्य श्री महाप्रज्ञ महाविद्यालय आसींद में असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी के पद पर सेवाएं दे रहे है| हिंदी विभाग के अध्यक्ष व कला विभाग का विभाग के विभाग अध्यक्ष है | आप नगर भीलवाड़ा (राजस्थान) के निवासी है | स्वतन्त्र लेखक के रूप में आपके विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेख प्रकाशित होते रहता है, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गोष्टीओं में प्रतिनिधित्व और शैक्षणिक गतिविधियों में भी संलग्न है|
The movie is good but the review is useless