हर सजा हुआ चेहरा
गुलाब, सा नहीं होता।
हर धड़कता हुआ दिल
लाजबाब, सा नही होता।
कहते है प्यार करने वाले
दिल की धडकनों में
टीस उठती है जब कभी
कोई दवा भी दिदार सा नही होता
हर सजा हुआ चेहरा
गुलाब सा नहीं होता
हर धड़कता हुआ दिल
लाजबाब, सा नही होता।
तेरी चाह में
महफिल-महफिल दर-बदर
भटकते चले इधर-उधर
ये वो रोग है जालिम, जिसका
इलाज मैखानो में भी, नहीं होता
हर सजा हुआ चेहरा
गुलाब सा नहीं होता
हर धड़कता हुआ दिल
लाजबाब, सा नही होता।
कहते हैं, प्यार के डाक्टर भी
दवा का असर, तो वे-असर है
इसका, इलाज तो दिदारे यार से,होता
हर सजा हुआ चेहरा
गुलाब सा नहीं होता
हर धड़कता हुआ दिल
लाजबाब, सा नही होता।
तकल्लुफ , हद से गुजर जाय
दुआओं का दौर, गुजर जाय
हर पल जीवन, मौत से लड़ जाय
मुहब्बत , जब हद से गुजर जाय
न जाने क्यों, कुछ असर नहीं होता।
हर सजा हुआ चेहरा
गुलाब सा नहीं होता।
हर धड़कता हुआ दिल
लाजबाब, सा नही होता।
“आशुतोष” नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति