जीवन की राग भी
बडी सुरीली हो जाती
जब आस पास वो
खडी हो जाती।
बिन बुलाये मेरी टोह मे रहता वो
हमेशा मेरी फिक्र करता वो
ये विरह की काली रात न होती
आँखो से यूँ बरसात की झडी न होती
जीवन की राग भी
बडी सुरीली हो जाती
जब आस पास वो
खडी हो जाती।
मुस्कुराकर कहती मुझसे
अब आये हो दिखती मै कब से
फिर बहलाकर उसे समझाता
घंटा दो घंटा वक्त गूजर जाता
छोडो इन बेकार की बातो को
कुछ अपनी कहो और सुनो
इसी मे सारी रात गुजर जाती
जीवन की राग भी
बडी सुरीली हो जाती
जब आस पास वो
खडी हो जाती।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति