ये सुर्ख़ गुलाब
सदा से रहा सबका चहेता
सभी का पसंदीदा
देवी देवताओं का
प्रेमी प्रेमिकाओं का
यही करता आया है
प्यार का इजहार
सदियों से … !
शायद इसकी सुर्ख रंगत
बढ़ा देती है
आपके प्रेम की कीमत,,
यही रिझाता आया है
देवी देवताओं को
क्या इससे भक्ति और गाढ़ी हो जाती है .. ?
या थोड़ी और पवित्र..?
…. और ये सफेद मोगरा,
ये तो बहुत ही इठलाता है
अपने रुप -रंग पर
अपनी सुगंध पर
वो जानता है
उसकी महक
बहका देती है लोगों को
महका देता है घर आंगन अकेले ही
कभी महकता है सुंदरी के गजरों में
कभी देवमालाओं में
और गर्वित होता है
अपने महत्त्व पर
रजनीगंधा, डहेलिया
गेंदा गुलदाऊदी
खिलते है गुलदानों में
सजाये जाते है स्वागत में
मगर ये पीले फूल कीकर के
बिखर जाते हैं खुले मैदानों में
रास्तों में बेतरतीव
गुलाब, मोगरा, मोतिया
रजनीगंधा और डहेलिया
ये पसंद हैं सभ्य शिक्षित ,सम्पन्न और गरीबों की भी
मगर अवांक्षित फूल कीकर के
यूं ही बह जाते हैं
हवा की दिशाओं में
जहां तहां बिखरे हुऐ
सहेजे रखते हैं
अपनी ताजगी
अपनी मुस्कान
माला, गजरों ,गुलदस्तों तक
पहुंच नही होती इनकी
ये तो बस बिछ जाते हैं
राहगीरों के पाँव तले
जो थके पाँव
इन फूलों की नरमी पाते हैं
हाँ वही पाँव
कतराते हैं इन महत्त्वहीनों को
महत्त्व देने में……!
#मीनाक्षी वशिष्ठ
नाम->मीनाक्षी वशिष्ठजन्म स्थान ->भरतपुर (राजस्थान )वर्तमान निवासी टूंडला (फिरोजाबाद)शिक्षा->बी.ए,एम.ए(अर्थशास्त्र) बी.एडविधा-गद्य ,गीत ,प्रयोगवादी कविता आदि ।