कविता हृदय का स्पन्दन है,यूँ कहा जाए कि स्वत: स्फूर्त आत्मिक उदगार जब संगीत से तारतम्य लेकर काव्यशास्त्रीय शैली में प्रस्फुटित होते हैं तो कविता बन जाते हैं। कविता हृदय की स्वाभाविक अनुभूतिपरक प्रक्रिया है,जिसे हम दैवीय अनुकम्पा भी कह सकते हैं। लिखना एक अलग बात है,और कविता लिख देना दूसरी बात। कविता लिखने के लिए मन का अनुशीलनपरक होना उतना ही आवश्यक है,जितना भोजन करते हुए रसास्वादन कर पाना। यदि मन विषय का मर्म छू लेता है,तो उत्पन्न होने वाले विचार प्रकट होने पर कालजयी हो जाते हैं और कविता जीवन्त हो आती है। कविता लेखन के लिए गुरु का होना तो आवश्यक है, क्योंकि वही पंकित कमल की सुवासितता को लोक-प्रशंसा का माध्यम बना पाता है, परन्तु सहृदयता और भावों की गहनानुभूति के बिना कुशल गुरु भी हीरे में चमक उत्पन्न नहीं कर पाता है। यदि भावों की गहनता तक पहुँचना ही कवि के लिए कठिन हो तो वह व्यर्थ हो जाने वाले अवशिष्ट से अधिक नहीं है। कविता लेखन के लिए विषय की गहन जानकारी और लेखन विधाओं पर पकड़ होनी चाहिए,लेकिन अकिंचन की दृष्टि से मन की लाग नहीं है तो सर्वस्व व्यर्थ ही होगा साथ ही साथ कवि को कविता में कोई संदेश तो अवश्य ही समाहित करना चाहिए। बिना लौकिक प्रभाव के मात्र कल्पना के धरातल पर काव्य रच देना विद्वता भले ही हो,पर सुकृत तो नहीं ही कहलाएगी।
#भगत टेलर ‘सहिष्णु’
परिचय : भगत टेलर ‘सहिष्णु’ प्रतापनगर (राजस्थान)में रहते हैं और प्रतियोगी शिक्षण कथा प्रवचन का व्यवसाय करते हैं। आप हर प्रकार के लेखन में सक्रिय हैं।