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।।दोहा।।
जयति जय माता सरयू, जय विष्णु अश्रु धार।
मोहि पर अब कर किरपा ,करो मोर उद्धार।।
।।चौपाई।।
मानसरोवर निकली धारा । तुम्हरी महिमा अपरम्पारा।।
महिमा तुम्हरी कही न जाई।शिवभूमि काली तट कहाई।।
शारदा राप्ती है सहायक । छपरा गंगा संग विलायक।
मैदान आ सरयू कहाई । अपन तट कई नगर बसाई।।
ऋग्वेद मे उल्लेख तुम्हारा। तट जहँ इन्द्र ने आर्य मारा।।
रामायण मे भी गुणगाना। मानस तुलसी तुमहि बखाना।।
तट बसी है अयोध्या नगरी। गुजरे होकर गोण्डा गगरी।।
सरयू मे प्रभु राम समाई ।बन्धु लय जल समाधि बनाई।।
देविका रामप्रिया नामा । सरयू नाम सभी जग जाना।।
तट तुम्हारे नहरें बनाई। शारदा रूप करें सिचाई।।
जयति जय हो मानसीनन्दन।जल तुम्हारा है अमृत कुन्दन।।
मोक्षदायिनी तुम हो माता। यहाँ नहाए राम विधाता।।
तुमरे तट कौतुक मनभावन। सूर्य अस्त मे शाम सुहावन।।
राम पैढी जो करे स्नाना । उस हेतु अंत स्वर्ग विधाना।।
सरयू तट अति विचित्र घनवन। आम फल महुआ संग चन्दन।।
तट नदी शोभा कह न जाई। मंद प्रवाह माझा बनाई।।
सकतपुर घाट बना शिवाला।खनक बजे घंटा घड़ियाला।।
माझा बरनत नहि बन शोभा।घाट नावविहार मन लोभा।।
जम्बू होते पसका आती। तुम वहां मिल घाघरा जाती।।
मध्य राह राजापुर आता । जन्मे जहँ पर तुलसी काका।।
पसका हो माह कल्पवासा । बोली जाए अवधी भाषा।।
इंहा नरसिंह रूप अवतारा। ले प्रभु हिरणा राक्षस मारा।।
विष्णू नेत्र हुआ अवतारा।आप बनी जग तारणहारा ।।
दैत्य शंकासुर वेद चुराई। समुद्र मध्या रहा लुकाई।।
जब सब देव विष्णु स्तुति कीन्हा।तभी प्रभु ने संज्ञान लीन्हा।।
फिर विष्णु मत्स्य रूप लिए । शंकासुर का संघार किए।।
वेद लाय ब्रह्मा को दीन्हा । हर्ष प्रभु विष्णु ने अति कीन्हा।।
जब प्रभु जी को हुआ अति हर्षा।हुई प्रभु नेत्र अश्रु वर्षा।।
ब्रह्म कमण्डल एकत्र कीन्हा ।मानसरोवर मे धर दीन्हा।।
मानसरोव बाहर लाए। वह महान वैवसत कहाए।।
जन्मी पूर्णिमा जेठ मासा । हुई पूरी ब्रह्म अभिलाषा।।
प्रभु अज गंगा संग मिलायो। पूर्वज अपने मोक्ष दिवायो ।।
नदियन मा तुम रामप्यारी । रोग नाशिका तारनहारी।।
श्री रामभक्त तुमको ध्यावैं। ध्येय तुम्हे मन शान्ति पावै।।
एक वर्ष स्नान करे सोई। दुःख मुक्त शीघ्र वह होई।।
जो यह रचना पढे पढावे । सब सामाजिक सुख वह पावै।।
कहयँ तीरथ सुनो सब भाई। कर स्नान लियो पुन्य कमाई।।
सुरम्य सरिता सरयू पावन।रामप्यारी अज मन भावन।।
दो आशीष हमे महरानी । मातु तुम मै पूत अज्ञानी।।
क्षमा करो अब मुझको माता। मै मूरख तुम भाग्य विधाता।।
।।दोहा।।
माता तुम ममतामयी , मै तुम्हारा कुपूत।
बेड़ा मोर पार करो , बन आप मोक्ष दूत।।
आशुतोष मिश्र
तीरथ सकतपुर
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