भारत में संस्कारों का सूर्य इसीलिए अस्त नहीं होता क्योंकि हम अपनी परम्परा को बार-बार दौहराते है और अनुसरण में भी लाते है। हम सिर्फ अपने लिए काम नहीं करते है। हम सिर्फ अपने परिवार के लिए नहीं कमाते है। हम सिर्फ अपनी जाति या धर्म के लिए दान नहीं देते है। हम संसार के सभी प्राणियों के लिए कार्य करते है। सभी के लिए कमाते है। सभी के लिए उसका उपयोग हो इस भाव के साथ दान देते है।
भारत की आत्मा किसी धैय वाक्य में है तो वह है “वसुधैव कुटुंबकम”। हम सभी भारतवासी एक परिवार का हिस्सा है। जैसे सबका अपना-अपना योगदान परिवार के संचालन में होता है। वैसा ही योगदान आज देश को चाहिए। हम याद रखे की वहीं परिवार और देश को आगे बढ़ाता है। जहॉ विविधताओं के बावजूद, वैचारिक मतभेदों के बीच भी मन भेद न हो। कर्तव्यों के प्रति परिवार का हर सदस्य सजग हो। हर कोई एक दूसरे की मदद के लिए, मार्गदर्शन के लिए, सहयोग के लिए तत्पर हो। कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन से वर्तमान में भारत की आर्थिक स्थिती काफी गड़बड़ा गई है। इस बात को पूरा देश स्वीकार रहा है। जिसके चलते 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में कोरोना वायरस के कारण उपजे आर्थिक हालात को सुधारने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की बात कही।
प्रधानमंत्री ही भारत रूपी परिवार के मुखिया है। और अपने परिवार, अपने देश के लिए प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए देश के विभिन्न वर्गों को, आर्थिक व्यवस्था की कड़ियों को, 20 लाख करोड़ रुपए का पैकेज देने की बात कही, इस पैकेज में लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और कानून, इन पर बल दिया है। ये आर्थिक पैकेज हमारे कुटीर उद्योग, गृह उद्योग, हमारे लघु-मंझोले उद्योगों के लिए है, जो करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन है, जो आत्मनिर्भर भारत के संकल्प का मजबूत आधार है। ये पैकेज, 2020 में देश की विकास यात्रा को, आत्मनिर्भर भारत अभियान को एक नई गति देगा। इस आर्थिक पैकेज से देश के श्रमिकों, किसानों, मध्यमवर्गीय लोगो के साथ छोटे उद्योगों को बड़ी राहत की उम्मीद जगी है।
प्रधानमंत्री ने हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए ‘वोकल’ बनने को कहा। लोकल प्रोडक्ट्स खरीदने और उनका गर्व से प्रचार करने को कहा है। यह प्रयास देश के हर हाथ को काम देने की और हर घर को रोजगार देने की अच्छी पहल है। क्योकि जो चीज देश के बाहर से आती है वह सामान्य लागत से दस बीस गुना दाम में हम खरीदते आए है। वही चीज यदी हमारी तकनीक से तैयार की जाए तो इसका बड़ा लाभ देश को होगा। देश का पैसा देश में ही रहेगा । बेरोजगारी दूर होगी। देश धीरे धीरे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा।
विश्व की आज की स्थिति के लिए प्रधानमंत्री ने “आत्मनिर्भर भारत” का आव्हान किया। क्योकि भारत में जब कोरोना संकट शुरु हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई (PPE) किट नहीं बनती थी। एन-95 मास्क का भारत में नाममात्र उत्पादन होता था। आज भारत में ही हर रोज 2 लाख PPE और 2 लाख एन-95 मास्क बनाए जा रहे हैं। और मदद के रूप में विश्व भर में भेजे जा रहे है। हम जब आत्मनिर्भर बने तो हम दूसरों की मदद भी कर सके। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है, तो आत्मकेंद्रित व्यवस्था की वकालत नहीं करता। भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता होती है। जो पृथ्वी को मां मानती हो, वो संस्कृति, वो भारतभूमि, जब आत्मनिर्भर बनती है, तब उससे एक सुखी-समृद्ध विश्व की संभावना भी सुनिश्चित होती है। भारत की प्रगति में तो हमेशा विश्व की प्रगति समाहित रही है। भारत के लक्ष्यों का प्रभाव, भारत के कार्यों का प्रभाव, विश्व कल्याण पर पड़ता है। भारत को आत्मनिर्भर बनाना। भारत की संकल्पशक्ति ऐसी है कि भारत आत्मनिर्भर बन सकता है।
भारत के पास साधन हैं, भारत के पास सामर्थ्य है, भारत में दुनिया का सबसे बेहतरीन टैलेंट है, जरुरत है बेस्ट प्रोडक्ट बनाने, अपनी क्वालिटी और बेहतर बनाने, मार्केटिंग को और आधुनिक बनाने की, ये हम कर सकते हैं ,हम ठान लें तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं, कोई राह मुश्किल नहीं। और आज तो चाह भी है, राह भी है। ये अवसर है भारत को आत्मनिर्भर बनाने का। सुखी होने का। कहा भी गया है-
सर्व परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् ।
एतद विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ॥
दूसरे पर आधार रखना पडे वह दुःख, स्वयं के आधीन हो वह सुख; यही सुख और दुःख का संक्षिप्त में लक्षण है ।
कोरोना के साथ जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही दुनिया में आज भारत को भी नये मार्ग खोलने है और उसकी पहल प्रधानमंत्री ने की है। “आत्मनिर्भर भारत” के लिए अनुरोध करके। यह पहल “सर्वे भवंतु सुखिनः” और “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना से ओतप्रोत तो है ही। भारत को समृद्ध करने की क्षेत्र में भी मील का पत्थर साबित होगी। साथ ही राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पीरोने का आधार भी बनेगी।
-संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन