लूटतंत्र बनता लोकतंत्र

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भारत का गणतंत्र विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र होने के नाते कुछ प्रश्न हमेशा मेरे दिमाग में वह बने रहते हैं। क्या हमारा लोकतंत्र मात्र” चुनावी लोकतंत्र” ही है? क्या हमारी निर्वाचित सरकारें चुनाव के समय बनाए गए मेनिफेस्टो को बाद में पूरा करती हैं? क्या जनादेश का सम्मान एवं प्रतिनिधित्व करती हैं?
वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अब असहज कर देने वाली घुटन महसूस हो रही है। क्या सच में हमारा संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य हैं। जनता को चुनावों के पहले चुनावी सबज बाग दिखाकर अपने पक्ष में पार्टियां करती है फिर साम, दाम, दंड ,भेद की नीति के अंतर्गत चुनाव संपन्न कराया जाता है जिसमें आज सुयोग्य और अनुभवी प्रतिनिधि ना होकर अपराधिक और भ्रष्टाचारी पृष्ठभूमि से उत्पन्न हुए लोगों को पूंजीवाद के सह पर पोषित करके चुनाव को जीताया जाता है। जब ऐसे प्रतिनिधि जनप्रतिनिधि बनते हैं तो स्वाभाविक है कि वह उसी तरह के काम को महत्व देंगे ही।और जब यह जनप्रतिनिधि होंगे तो शिक्षित प्रशासन को है भी यह उसी राह पर छलनी को मजबूर कर देंगे जो अपने माता-पिता की मेहनत से कमाई पूंजी से तैयार होते हैं और उन्हें ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा पाठ जन्म से ही पढ़ाया जाता है। ऐसे प्रशासनिक अधिकारी यदि सत्ता अनुकूल नहीं होते हैं तो हमको ट्रांसफर पर ट्रांसफर को झेलना पड़ता है या फिर किसी तरह से मरवा दिया जाता है। मजबूर होकर वह इन भ्रष्ट नेताओं की चरण वंदना करते हैं। इसे अपनी ड्यूटी समझ बैठता है और उन्हीं के साथ उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के अनुसार कार्य करने लगता है एवं पैसा कमाना कि अपना मूलभूत सिद्धांत बना लेता है।
जब भ्रष्ट नेता और भ्रष्ट प्रशासन एवं छोटे से छोटे कर्मचारी तक जो की मात्र रुपया कमाने के लिए कार्य करने लगे हैं तो समाज का प्रत्येक वर्ग भी एक दूसरे को लूटने खसोटने पर आमादा हो गया है। आज हम सभी एक दूसरे के साथ समाज में भले ही साथ रहते हैं किंतु हम सभी को एक दूसरे को लूटने और अपना फायदा निकालने में महारत हासिल हो गई है।
वर्तमान में जबकि हम सभी कोरोना काल की दूसरे विनाशकारी लहर का सामना कर रहे हैं जहां लाशों के ढेर ही ढेर नज़र आ रहे हैं। यहां भी हमारी सरकार अपनी राजनीति करती नजर आ रही है मरने वालों के आंकड़े कम करके बताए जा रहे हैं और संक्रमितो की संख्या ज्यादा बताई जा रही है ताकि समाज मैं एक डर का माहौल बनाया जा सके। कितना नीचे गिर गई है हमारी चुनी हुई सरकार।
देश का निजी और सरकारी स्वास्थ्य विभाग जो कि पहले से ही बीमार था आज आईसीयू की स्थिति में आ गया है। अब लोगों का इलाज तो दूरी जांच करवाने के लिए कई दिनों का इंतजार करना पड़ता है । जैसे तैसे अस्पताल में एडमिट होने के बाद तो और भी स्थिति गंभीर हो जाती है क्योंकि वहां पर ना तो मूलभूत सुविधाएं जैसे पलंग, साफ सफाई और आवश्यकता की वसतुये नहीं मिल पाती है। इसके अतिरिक्त उसे जीवन रक्षक दवाएं और आक्सीजन भी नहीं मिल पा रही हैं और वह अकाल मृत्यु की भेंट चढ़ रहा है। लोगों के परिवार टूट रहें हैं और हमारे हर चीज पर चुकाये गये टेक्स से अपनी सेलरी और सेवाओं को पाने वाले इस महामारी में मदद करने भी नहीं आ रहे हैं।
इन सभी के बावजूद सरकार अपना राजस्व घाटा की पूर्ति के लिए जीवन का अभिन्न अंग बन चुके पेट्रोल और डीजल एवं खाद्य तेलों को महंगा कर दिया है साथ में शराब की मूल्य वृद्धि भी कर दी है।
आर्थिक रूप से टूट चुके मध्यम और गरीब वर्गों के लोगों के घर में जो कोरोना के कारण लोग शराब कम पीने लगे थे।अनलाक होने पर फिर से बाहर आए और मनचाहे मूल्यों को दिया। इससे घरों और समा में अपराध होने लगें। सरकारों ने सालभर में सिर्फ आमदनी को बढ़ाने और कुर्सी को बचाने के लिए ही काम किया है ।आम जनता से मूलभूत सुविधाओं के लिए कुछ भी नहीं किया है।
हमारा देश 2014 तक एक मजबूत आर्थिक अर्थव्यवस्था था। नोटबंदी, जीएसटी और नये कानूनों के कारण आर्थिक रूप से टूट सा गया फिरआज जब कोरोना का दुर्भिक्ष रूप हमारी समाज में व्याप्त हो चुका है ।कोई भी उचित तैयारी नहीं की है सिर्फ चुनाव प्रचार के। सरकार ने देश की अधिकांश उत्पादन करने वाली कंपनियों का निजीकरण कर दिया है, अपने कुछ कारपोरेट मित्रों के लिए। आम जनता को अब वह मनमानी कीमतों पर सामान बेच रहे हैं जिससे लगभग बेरोजगार से हो चुके भारत को बहुत ही निरदयी तरीकों से सरकार की सत्ता लोलुपता की पूर्ति मात्र के लिए लूटने के लिए छोड़ दिया गया है।
इन दिशाहीन परिस्थितियों में प्रशासन भी भ्रष्टाचार की नदी में मस्त होकर डुबकी लगा रहा है और आम जनता को मनमाने तरीकों से लूट रहा है। वर्तमान में निरंकुशता का सबसे निरदयी रूप हम सभी को पुलिस महकमे से देखने को मिल रहा है। पुलिस जो कि समाज की रक्षक होती है । सरकारों की निष्क्रियता और गुटबाजी ने उन्हें आपस में टांग खींचने का कार्य और सिर्फ राजनीति करने के लिए छोड़ दिया है एवं पुलिस विभाग को आंतरिक शांति बनाए रखने के नाम पर खुली छूट दे रखी है ।ऐसे में हर जगह उनकी कारस्तानियां उजागर हो रही है किंतु सरकारें चुपचाप बैठी हुई है ,जनता पीट रही है और उनसे लूट रही हैं। और सरकारें अपने उटपटांग बयानबाजी करके मीडिया मैं टाइम पास कर रहे हैं।
मीडिया जो किसी भी लोकतंत्र का चौथा स्थान होता है ।आज बहुत बकवास कार्यक्रमों में, डिबेट्स में और अर्थहीन कार्यक्रम चला रही हैं मात्र कंपनियों के विज्ञापनों के लिए अपना चैनल चला रहा है ।आम जनता से जुड़े हुए सभी मुद्दे लगभग खत्म हो चुके हैं। वह न्यूज़ चैनल कम मनोरंजन का माध्यम ज्यादा बन चुके हैं। खबरों में भी अपनी प्रमाणित तक खो चुके हैं। ऐसे में आम जनता कहां जाये , किससे शिकायत करें किसे अपना मानें?हर कोई मुंह खोले खड़ा है पैसा खाने के लिए ।आम जनता का खून चूसने के लिए।
2019 लोकसभा चुनाव के समय एक -एक मतदाता का मत पाने के लिए कितने अभूतपूर्व इंतजाम किए गए थे किंतु अब उसी मतदाता को मरने के लिए छोड़ दिया गया है ।शायद चुनाव जीतने के बाद अब उनकी जरूरत नहीं है ।कितनी दोगली और ठगने वाली सरकार है जो मुंह में राम और बगल में छुरी की कहावत को चरितार्थ कर रही है।
रही सही लूट की कसक हमारे खुदरा और थोक व्यापारियों में निकाल ली है जो किराना ,दूध, केमिस्ट्र, सब्जी भाजी ,फल एवं जीवन आवश्यक वस्तुओं को मनमानी दाम कर देने के साथ मिलावटी और नकली सामान्य को धड़ल्ले से बेच रहे हैं। उन्हें किसी का भी डर भय नहीं वह इस आपदा में अपने अवसर तलाश रहे हैं।
सच में हमारा समाज एक दूसरे को जौंक की भांति चूस रहा है मात्र अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति और पूंजी बटोरने के लिए। वह गिरे से गिरा काम करने को भी तैयार है।
यकीन नहीं होता कभी हम संस्कारों विश्व गुरु हुआ करते थे अब सिर्फ विश्व लुटेरे, देश लुटेरे, मानवता के हत्यारे एवं लाशों के सौदागर बन गये है। हमारी अवसर वादिता ने हमारी संवेदनाओं को पूरी तरह से खत्म कर दिया है।अब देश के तंत्र को लोकतंत्र कहना भी उचित नहीं होगा क्योंकि वह एक लूटतंत्र बन गया है।

स्मिता जैन

matruadmin

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