हरा गाउन पहने हुए नंगे पैर,सिर ढँका हुआ,यह कौन चला जा रहा है वो भी इस वीरान रेगिस्तान में.. वो भी इतनी रात को।
उस शख्स को दूर से देखा,स्पष्ट कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था,पर इतनी रात को ऐसी जगह पर कोई क्यों आया है ?
उत्सुकतावश उसका पीछा करने की इच्छा हुई। मैं चल पड़ी उसके पीछे पीछे, वो आगे बदहवास-सा इधर- उधर देख रहा था मानो किसी की तलाश थी उसको ।
मैंने अपने क़दम बढ़ाए और गति भी। उसको आवाज़ लगाई-‘कौन हो तुम, और यहाँ इस वक़्त क्या कर रहे हो ? ‘
उसने मुड़कर जैसे ही देखा, मेरे होश आफ्ता हो गए। वह तो एक महिला थी। मेरे हाथ में एक टॉर्च थी,उसके चहरे पर रौशनी जैसे ही पड़ी,वह सकपका गई। उसने कह-‘मैं नहीं जानती,मैं कौन हूँ,मुझको कोई पुकारता है इस वक़्त रोज़ मुझे किसी की वेदना भरी पुकार सुनाई देती है। उसी आवाज़ के पीछे पीछे मैं यहाँ चली आई हूँ।’
‘पर आप कौन हैं ? ‘
मैं ! कौन हूँ मैं ? अपने-आप से पूछा मैंने,उसकी शक्ल देखी तो लगा जैसे मेरे सामने मेरा साया था। कुछ पल रुककर मैंने उससे कहा-‘मैं सपना हूँ , तुम्हारी आँखों का,जिसको तुम रोज़ देखा करती हो। मैं ही तो हूँ जो तुम्हारे बचपन से तुम्हारे साथ रहा हूँ विना नागा करे।’
उसने मेरी तरफ़ देखा और बोली-‘ हाँ, तुम ही तो हो, क्यों तुम मेरा पीछा कर रहे ?
‘तुम्हीं ने तो कहा था न कि कोई हैं जो तुमको पुकारता है। अब आ ही गए हो तो मेरी मदद करो,उस आवाज़ को ढूंढने में।’
अब वह अकेली नहीं थी,उसके साथ उसका सपना था। इस वीरान रेगिस्तान में अब उस आवाज़ को खोजना था। चलते रहे दूर तक,सांय- सांय की आवाजें और रेंगते हुए साँपों के अलावा कोई नहीं यहाँ तो..पर सुनो न, वो आवाज़ तो अब भी आ रही है,शायद वहां से …..’।
आओ चलें उस तरफ,टार्च से देखो न, शायद कुछ दिखायी दे जाए। वो देखो, वहां दो आँखें दिख रहीं है। अरे यह तो कोई पुराना मकान है,खंडहर हो रहा ये तो। ऐसी जगह पर कौन रह सकता है ? यह आँखें किसकी है ?
और यह क्या सपना तुम कहाँ गए, अब मैं क्या करूं मुझे तो डर लग रहा है। ये क्या,यह पसीना कैसा ?
हड़बड़ा कर उठ जाती हूँ,अक्सर इस ख्वाब को देखने के बाद। क्या है इसका राज़ ? क्या कोई बता पाएगा ।
जाने क्यों आता रहा है एक ही ख़्वाब बार-बार । वो आँखें आख़िर किसकी हैं ?
#कल्पना भट्ट
परिचय : पेशे से शिक्षिका श्रीमती कल्पना भट्ट फिलहाल भोपाल (मध्य प्रदेश ) की निवासी हैं। 1966 में आपका जन्म हुआ और आपने अपनी पढ़ाई पुणे यूनिवर्सिटी से 1984 में बी.कॉम. के रुप में की। विवाह उपरांत भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से बी. एड.और एम.ए.(अंग्रेजी) के साथ एलएलबी भी किया है। आप लेखन में शौकिया तरीके से निरंतर सक्रिय हैं।
बहुत सुंदर रचना.
रोचक,भयभीत करने वाला सपना।सही मुहावरा है “होश फाख्ता हो गए।”फाख्ता एक पक्षी है।मतलब होश उड़ गए।