विरह की बरसात

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sanjeev shukl
यह  बीत  रही  है  शाम, सुनो घर आओ।
इन नयनन में तुम आज,अभी बस जाओ।।
यह  नयना  सुबह  व शाम, ढूंढती तुमको।
अब   नींद नही दिन रैन, सुनो जी हमको।।
सजल  नयन  मेरी  आज, विरह की वेला।
कर  मो  पे  तुम   उपकार, न रहूँ अकेला।।
अब तुम ही हो सरताज, नयन सुख वारो।
विरह   का  होय  परिहार, अब तो पधारो।।
अब  आओ  प्राणाधार  , अभी आजाओ।
मम मन के खुले हैं द्वार, आन बस जाओ।।
क्यों   दुख   देते चितचोर, समय है भारी।
दर्शन     दो   मोहे   नाथ,  न  रहूँ दुखारी।।
जो   आये   ना   सरकार ,  मरण  है मेरा।
अब   जीवन   के  दिन चार, कोई न तेरा।।
अब  आजाओ  हमराज, मिलन हो जाये।
जो  दिल  में  है  अनुराग ,  उसे  बरसायें।।
#पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
 
परिचय-
 
नाम – संजीव शुक्ल
साहित्यिक उपनाम – “सचिन”
जन्म स्थान – लौरिया (पश्चिमी चम्पारण) बिहार
वर्तमान पता – दिल्ली 
स्थाई पता – ग्राम + पोस्ट – मुसहरवा (मंशानगर) वाया- नरकटियागंज, जिला – पश्चिमी चम्पारण, बिहार – ८४५४५५
शैक्षिणिक योग्यता – स्नातकोत्तर (संस्कृत)
सं.सं.वि.विद्यालय वाराणसी
कार्यक्षेत्र – प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत (दिल्ली)
सामाजिक गतिविधि – किसी भी प्रकार की सामाजिक कुप्रथा जैसे – दहेज, भ्रूणहत्या, बालश्रम, आरक्षण, घुसखोरी आदी कुप्रथाओं का कट्टर विरोधी… समाज सेवा मेरे जीवन का प्रथम एवं एकमेव लक्ष्य…. सफलता प्रदान करना परमपिता परमेश्वर के हाथ।
कोई प्रकाशन – कुसुमलता साहित्य संग्रह
रचना प्रकाश – विलुप्त गौरैय्या (अमर उजाला)
प्राप्त सम्मान – साहित्यपिडीया से प्रशस्तिपत्र
ख़्याल समूह से सर्वश्रेष्ठ रचना के परिपेक्ष्य में प्रशस्तिपत्र
लेखनी का उद्देश्य – मन के भावों को जनमानस तक पहुंचाना… सामाजिक कुरीतियों को इंगित कर रचना के माध्यम से जनमानस तक पहुंचाना
भाषा ज्ञान – हिन्दी एवं भोजपुरी
रुचियाँ – लिखना, फिल्में देखना, पुराने गाने सुनना , क्रिकेट मैच देखना व सुनना

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