भारत में हर पाँचवा साहित्यकार मातृभाषा उन्नयन संस्थान से परिचित
हिन्दी के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से वर्ष 2018 में मातृभाषा उन्नयन संस्थान की नींव रखी गई, जिसका उद्देश्य यही है कि हिन्दी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाया जाए। इसके लिए भारत के प्रत्येक राज्यों में हिन्दीयोद्धाओं के दल के माध्यम से हिन्दी सेवा का कार्य जारी है। इस संस्थान के संरक्षक वरिष्ठ पत्रकार और विचारक डॉ. वेद प्रताप वैदिक जी एवं अज्ञेय के चौथा सप्तक के अग्र कवि श्री राजकुमार कुम्भज जी हैं। संस्थान के संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ हैं, जो विगत 15 वर्षों से भी अधिक समय से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
संस्थान के पंजीयन के पूर्व वर्ष 2016 से ही यह हिन्दी साधना प्रारम्भ हुई है एवं इसके पीछे भी हिन्दी का विस्तार निहित है और उन उद्देश्यों में भी भाषाई सामंजस्यता और स्वभाषा हिन्दी की स्थापना मूल है। संस्थान के मूल ध्येय में हिन्दी भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाना, जनता को जनता की भाषा में न्याय मिलने का प्रबन्ध करना, हिन्दी भाषा के वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों को जनमानस तक पहुँचाना, हिन्दी के समृद्ध साहित्य को जनहितार्थ प्रचारित करना, नवांकुर रचनाकारों को सबलता और प्रोत्साहन देते हुए शुचिता कायम रखना जैसे अनेक उद्देश्य सम्मिलित हैं।
संस्थान द्वारा राष्ट्रव्यापी ‘हस्ताक्षर बदलो अभियान ’ संचालित किया जा रहा है, जिसमें हमें हमारे जीवन की सबसे छोटी इकाई हस्ताक्षर को स्वभाषा में करना होगा। वर्तमान में लगभग 21 लाख से अधिक लोगों द्वारा मय प्रतिज्ञा पत्र हिन्दी में हस्ताक्षर करने की प्रतिज्ञा ली गई है। इन्हीं 21 लाख लोगों के अवदान के कारण 11 जनवरी वर्ष 2020 को वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स, लंदन द्वारा मातृभाषा उन्नयन संस्थान को विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया।
इसी के साथ, मातृभाषा उन्नयन संस्थान हिन्दी को रोज़गारमूलक भाषा बनाने के लिए संकल्पित है, क्योंकि भारत विश्व का दूसरा बड़ा बाज़ार है। यदि भारत के बाज़ार ने हिन्दी को अनिवार्य करना आरम्भ कर दिया तो निश्चित तौर पर विश्व को भी इस ओर झुकना ही होगा।
वर्ष 2018 से इन्दौर से आरंभ हुआ हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए यह यज्ञ, जिसका आज देशभर के सत्रह राज्यों में वर्चस्व है। संस्थान द्वारा कवि सम्मेलन, साहित्य उत्सव, गोष्ठी, सम्मान समारोह, विमोचन के अलावा युवाओं के लिए विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में परिचर्चा, युवा संसद, व्याख्यान इत्यादि आयोजित किए जाते हैं, जिससे अधिक से अधिक युवा हिन्दी से जुड़ें और कार्य करें।
संस्थान के अनुषांगिक प्रकल्प
मातृभाषा उन्नयन संस्थान के सात प्रकल्प वर्तमान में सक्रिय हैं, सर्वप्रथम संस्थान द्वारा मातृभाषा.कॉम का संचालन वर्ष 2016 से किया जा रहा है, जिसमें रचनाकारों के लेखन को प्रकाशित कर पाठकों को उपलब्ध करवाया जाता है, साथ ही, देश व दुनिया के साहित्य समाचारों को स्थान देते हुए साहित्य पत्रकारिता को बढ़ावा दिया जाता है। इसके साथ संस्थान द्वारा हिन्दी के रोज़गार के अवसर उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से ‘हिन्दीग्राम’ के माध्यम से रोज़गारमूलक कार्यों को किया जा रहा है। संस्थान द्वारा हिन्दी के साहित्यकारों की जानकारियों के संग्रहण के लिए ‘साहित्यकार कोश’ बनाया जा रहा है। साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए पुस्तक प्रकाशन मुख्य आवश्यकता है और इसके लिए संस्थान का अपना प्रकाशन प्रकल्प है ‘संस्मय प्रकाशन’। इसके माध्यम से संस्थान शुचितापूर्वक साहित्य प्रकाशित कर हिन्दी उन्नयन के लिए कार्य कर रहा है। आज के युग में किसी आंदोलन को स्थापित करने के लिए समाचार संस्थाओं, मीडिया जगत और पत्रकारों का योगदान भी महत्त्वपूर्ण है। इसी कड़ी में संस्थान की अपनी मासिक पत्रिका ‘साहित्यग्राम’ है और अपना वेब न्यूज़ चैनल ‘ख़बर हलचल न्यूज़’ है। साथ-साथ समाजसेवा, जनसेवा के लिए कोरोना जैसे भयावह कालखण्ड में आम जनमानस की सहायता के लिए ‘सेवा सर्वोपरि’ प्रकल्प का निर्माण किया गया, जिसके माध्यम से आपदाकाल में हज़ारों परिवारों तक निःशुल्क राशन उपलब्ध करवाया, हज़ारों मरीज़ तक जल, भोजन इत्यादि वितरण, पुलिसकर्मियों, किन्नरों इत्यादि लोगों को सुरक्षा किट आदि वितरित की गई। पशुओं के भोजन इत्यादि का प्रबंधन जैसे सैंकड़ो जनउपयोगी सेवाएँ लगातार की जा रही हैं।
संस्थान में कौन-कौन क्या है
संस्थान की नींव सुप्रसिद्ध पत्रकार एवं तकनीकी योद्धा डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने इन्दौर में रखी थी। डॉ. अर्पण जैन बतौर उद्योगपति व पत्रकार शहर में चिर परिचित रहे, इसके साथ ख़्यात लेखक भी हैं।
संस्थान की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष डॉ. नीना जोशी, सचिव गणतंत्र ओजस्वी, कोषाध्यक्ष शिखा जैन, कार्यकारिणी सदस्य भावना शर्मा, नितेश गुप्ता, सपन जैन काकड़ीवाला व प्रेम मंगल हैं।