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पिता संभालते, घर परिवार
उनसे घर का, सुखी संसार।
घर बाहर की, चिन्ता रखते
वो घर के, सच्चे कर्णधार।
वो अर्थ धुरी, बनकर रहते
हर संभव, सुविधाएं देते।
दृढ निश्चय, उत्साह अडिग,
सहते अभाव, न कुछ कहते।
पिता विशाल, बरगद स्वरूप
फैली छाया का ,सुखद रूप।
नीड़ों में, सुरक्षित बाल वृद्ध,
वो परिधि, सुरक्षित है अनूप।
पिता है, शीश पर व्योम छत्र
बता कर ,जीवन के विविध तंत्र।
अनुशासित ,उत्साहित रखते,
सिखाते, सफलता मूल मंत्र।
अलक्षित सा, पिता का ममत्व
वे प्रकृति के उत्कृष्ट सत्त्व।
शत- नमन , वंदन है, पितृचरण,
पिता पुज्य, सम परमात्म तत्व।
#पुष्पा शर्मा
परिचय: श्रीमती पुष्पा शर्मा की जन्म तिथि-२४ जुलाई १९४५ एवं जन्म स्थान-कुचामन सिटी (जिला-नागौर,राजस्थान) है। आपका वर्तमान निवास राजस्थान के शहर-अजमेर में है। शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र में आप राजस्थान के शिक्षा विभाग से हिन्दी विषय पढ़ाने वाली सेवानिवृत व्याख्याता हैं। फिलहाल सामाजिक क्षेत्र-अन्ध विद्यालय सहित बधिर विद्यालय आदि से जुड़कर कार्यरत हैं। दोहे,मुक्त पद और सामान्य गद्य आप लिखती हैं। आपकी लेखनशीलता का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है।
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