जो जीवनप्राण देता है,सहारा घरका होता है
नहीं कहता वो ईश्वर है,रब से कम नहीं होता
मिले बल ताप ऊर्जा,सृजन पोषण ये होता है
नहीं है बात सूरज की,रवि से कम नही होता
मिले चहुँओर से छाँया,शीत व ताप से रक्षण
नहीं बातें अम्बरकी,गगन से कम नहीं होता
करे अपनी सदा रक्षा शीत या शत्रु के भय से
नहीं बातें हिमालय की,हिमाचल सा होता है
बसेरा सर्वजनःदेता,स्वयं साधु सा बन रहता
नहीं देखा वट वृक्ष,पिता बरगद सा होता है
तन क्षारक्षार करले,वह दानीकर्ण सा होता
मरण की बात आए,पितु दशरथ सा होता है
जगूँ जब भोर मैं जल्दी,उसे पूरव ही देखा है
भोरतारे की नही बातें,जगते पिताश्री देखा है
उलझनें जब आएँ,उत्तर उसी से दिखता है
ध्रुवजी की नही बातें,उत्तर पिता से मिलता है
कहते हो नही रोता,रुदन में स्वर नहीं रहता ?
नगराज सा रिसता,पिता का नेत्रजल झरता
सरिताओ का यह बहना,हिमालयश्वेदकीधारा
पिता के श्वेदबिन्दु से,नही , पावन कोई धारा।
पर्वतीय,नीर है झरने,सुता कर,पीत है करने
पहाड़ी झरने से बढ़ के,पिता के नेत्रिय झरने।
सिन्धु धीर खारा है,पिता का श्वेदनीर खारा है
समन्दर है बड़ा लेकिन,पिता कब धीरहारा है
मुंशी प्रेमचन्द का हीरो गोदान था संघर्षों से
पिता दीखें होरी सा,खटता पिटता वर्षो से
मुखिया मुख सो चाहिए कहगये तुलसीदास
मुखिया मुखसा परखिए,पिता हमरेहि पास
पितुभाव जब.जागे,हरेक हदपार कर जाता
न देखे रात बाढ़ नदिया, वसुदेव बन जाता
प्राणी जात कुदरत से,संतति,मोह है पाता।
मनुअवसर जो पाजाए,वह धृतराष्ट्र होजाता
प्रेम की बातनिराली है,प्रेमदीवाना कर जाता
सुत प्रेम पुत्र हतभ्रम मे,गुरूद्रोण कट जाता।
सोचता हरपिता ऐसे कि,पुत्रपीड़ाकोपीजाता
हुमायू रुग्ण हो लेकिन,बाबर खुदही मरजाता
दीवारें अहं खण्डर कर,संतति नींव बनजाता
पिता जो खुद इमारत था,वो दीवार बनजाता
विजेताई तमन्ना है पुरुष के खून में हर बार
पुत्र को सद सबल कर,पिता चाहता निजहार
देवोसे डरा न दुनिया से,वह शत्रु से नहीं हारा
गर हो संतति बेदम तो,पिता संतान से हारा
हसरतें पालते सब है,महल रुतबा बनाने का।
पितु अरमानसृजता है,विरासतछोड़जाने का
पिता ने लिया कुछ तो,बड़े वरदान दे जाता।
ययाति,भीष्म की बातें,जमाना,याद करता है।
नरेशों की रही फितरत,युद्ध व घात की बातें
पुत्रहित राजतज देते,स्वयं वनवासी हो जाते
कभी नाराज न करना,वो भावि का नियंता है
हिरण्यकश्यप होजाता,पिताजबक्रुद्धहोता है
वज्रसीपीठ अर् काँधे,जन्मभर दम दिखाते है
जनाजा संतति का देखे,पिता दमटूट जाते है
वज्र सीना,गर्म तेवर,गरूरे दम जो बन जाते।
विदाबेटी के होते पल,पिघलधोरे से बहजाते
माँ की महिमा ममता,त्याग,धैर्य,समता बाते।
शक्ति बिंदी,मेंहदी का,स्रोत पिता को पाते।
ताकत शौहरत रुतबा,दौलत त्याग प्रेम बाते।
धैर्य मोहगुण पिता को,माँ , से ही मिल पाते।
अस्थियाँ दान में दे दी,दधीचि नाम,ऋषि का।
स्वर्ग के देवताओं पर,यह अहसान ऋषि का।
मगर सर्वस्व जो दे ते ,कऱें सम्मान उनका भी।
पिता ऐसा ही होता है,रहेअहसास इसका भी
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः