क्या विडंबना है कि ‘देवताअों की अपनी भूमि’ ही ईश्वर निर्मित पंचमहाभूतों में से एक जल के तांडव से कराह रही है। जब इस हरे-भरे केरल राज्य में अोणम की तैयारियां जारी थीं, ठीक उसके पहले जल प्रलय ने राज्य में न केवल दस्तक दी, बल्कि त्राहि-त्राहि मचा दी। अोणम, मसाले और कथकली के लिए मशहूर केरल के 14 में से 11 जिले अभी भी पानी में डूबे हुए हैं। चौतरफा तबाही की खबरें हैं। जिस पानी का हर साल 1 जून को केरलवासी बेसब्री से इंतजार करते रहे हैं, उसी पानी ने आज उन्हें बेघर कर िदया है। विनाश के तांडव के बीच राहत की बात केवल इतनी है कि इस भीषण बाढ़ में भी इंसानियत अभी डूबी नहीं है। कुछ देर से ही सही पूरा देश केरल के साथ खड़ा है। मदद के लिए चारों तरफ से हाथ आगे बढ़ रहे हैं। सेना फिर देवदूत की तरह केरल में उतर गई है। इन सबसे बड़ा खुद केरलवासियों का जज्बा है, जो इस आसमानी विपदा से पूरी जिजिविषा के साथ जूझ रहा है।
कहते हैं कि केरल ने इतनी बड़ी जल विभीषिका 1924 के बाद पहली बार देखी है। तब राज्य का मल्ला पेरियार बांध टूटने के कारण ऐसे हालात पैदा हुए थे। केरलवासी आज भी उसे ‘बाढ़ 99’ के रूप में याद करते हैं। 99 इसलिए कि विपदा का वह साल मलयाली कैलेंडर के हिसाब वर्ष 1099 था। उस प्रचंड बाढ़ में कितने लोग मरे थे, इसका ठीक-ठीक आंकडा उपलब्ध नहीं है। लेकिन बुजुर्गों के मुताबिक मरने वालों की तादाद हजारों में थी।
बहरहाल केरल में आई यह बाढ़ भी कम नहीं है। अधिकृत आंकड़ों के मुताबिक अब तक बाढ़ में 370 लोग अपनी जानें गवां चुके हैं। साढ़े 8 लाख लोग अभी 3 हजार 734 राहत शिविरों में रह रहे हैं। 59 पुल पानी में डूबे हैं। रेल और सड़क मार्ग छिन्न-भिन्न हो चुके हैं। फसलें बरबाद हो चुकी हैं। अपने ही घर तालाब में तब्दील हो चुके हैं। केरल को इस विभीषिका से उबरने में काफी वक्त लगेगा और इसके लिए काफी पैसा भी चाहिए। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन के अनुसार प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक केवल मुख्य मार्गों की मरम्मत के लिए साढ़े 4 हजार करोड़ की रू. की दरकार है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बाढ़ पीडि़त केरल का हवाई दौरा किया और केन्द्र ने तत्काल 5 सौ करोड़ रू. दिए भी, लेकिन महाविनाश को देखते हुए ये नाकाफी है। वैसे अन्य राज्यों ने भी मदद का हाथ आगे बढ़ाया है। कई स्वयंसेवी संगठन और निजी संस्थाएं भी सहायता कर रही है। बावजूद इसके लिए राजनेता यहां भी राजनीतिक हेराफेरी से बाज नहीं आ रहे।
लेकिन मदद तो मदद है। किसी भी विपदा का सामना पहले स्वयं व्यक्ति को या राज्य को ही करना पड़ता है। इस मायने में केरलवासी एक नई इबारत लिख रहे हैं। केरल के एक मछुआरे जैसल केपी सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। राज्य के त्रिशूर माला और मल्लाप्पुरम के वेंगरा में मछुआरों ने रेस्क्यू ऑपरेशन टीम बनाई है। मलाप्पुरम स्थित तनूर में बाढ़ में फंसी महिलाओं को सुरक्षित निकालने के लिए एनडीआरएफ की टीमों ने नाव का इंतजाम किया और वे पीड़ितों तक पहुंची भी, लेकिन नाव तक पहुंचने और उसमें चढ़ने के लिए महिलाओं के पास कोई सहारा नहीं था। यह देखकर मछुआरे जैसल उन महिलाओं की मदद को आगे बढ़े और बाढ़ के पानी में ही पत्थर बनकर खड़े हो गए। इसके बाद एक-एक करके महिलाएं उनकी पीठ पर चढ़कर नाव में बैठने में सफल हो पाईं। जैसल के इस जज्बे को देखकर एनडीआरएफ की टीम ने भी उनकी हौजला अफजाई की। केरल के मछुआरों के समूह ने अब तक बाढ़ में फंसे हजार लोगों को बचाया है। केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने उन्हें ‘केरल मिलिटरी फोर्स’ की संज्ञा दी है। बड़े ही क्यों बच्चे भी इंसानियत को बचाने में पीछे नहीं हैं। तमिलनाडु के विलुपुर्रम की रहने वाली नन्ही अनुप्रिया ने अपनी गुल्लक के 9 हजार रुपए केरल बाढ़ राहत कार्य के लिए दान कर दिए। उसे लगा कि इस रकम से साइकल खरीदने से ज्यादा जरूरी बाढ़ पीडि़तों को बचाना है। उसके इस जज्बे से साइकिल निर्माता हीरो कंपनी के मालिक भी अभिभूत हुए। कंपनी के मालिक पंकज मुंजाल ने अनुप्रिया को अपनी तरफ से साइिकल गिफ्ट करने का ऐलान कर दिया। इसी क्रम में एक केरल की एक कॉलेज छात्रा हनान हामिद, जिसे काॅलेज में पढ़ाई के साथ साथ मछली बेचने को लेकर सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया था, ने भी बाढ़ पीडि़तों के लिए डेढ़ लाख रुपये इकट्ठे किए हैं। वह यह रकम राहत कार्य के लिए दान करना चाहती है। नेवी के अफसर पायलट कमांडर विजय वर्मा ने जिस जांबाजी के साथ बाढ़ में फंसी दो महिलाअों को बचाया, उसके बदले लोगों ने उस मकान की छत पर ही लिख दिया- थैंक्स। इससे ज्यादा वे कर भी क्या सकते थे। क्योंकि सब कुछ तो डूब गया है। वो तस्वीरें भी हजारों आंखों को नम कर गईं, जिनमें मांएं अपने बच्चों को वापस सुरक्षित पाकर मानो पूरी दुनिया ही पा गईं। वे दृश्य भी कम प्रेरक नहीं है, जब बाढ़ पीडि़त एक से एक मिलकर ग्यारह की तरह अपनी और दूसरों की मदद करते दिखाई पड़े।
लुब्बो लुआब यह कि कुछ भी हो, इंसानियत को जिंदा रखना है। तमाम भिन्नताअो और मतभेदों के बाद भी जिंदा रखना है। हर हाल में जिंदा रखना है। इसी एक जज्बे के साथ केरलवासी हिम्मत के साथ बाढ़ से जूझ रहे हैं। सरकार और प्रशासन अपने ढंग से काम करते हैं। उसमें कई खामियां भी होती हैं। लेकिन इससे जीवन का राग भैरवी में नहीं बदलता। फिर केरल तो वह प्रदेश है, जो ‘देवभूमि’ होते हुए असुरराज महाबलि को भी श्रद्धा के साथ पूजता है। वह यह झटका भी सह लेगा। चिंता की बात यह होनी चाहिए कि प्राकृतिक विपदाअों की फ्रीक्वेंसी लगातार बढ़ रही है और इसमें ईश्वर का कोप कम, मनुष्य का लालच और प्रकृति के नियमों की अवहेलना ज्यादा है। केरल भी इसका अपवाद नहीं है। कहते हैं कि नाग देवता वासुकि ने अपने ‘पवित्र विष’ से केरल की नमक से बंजर हो चुकी जमीन को हरे भरे उपवन में बदल दिया था। बाढ़ जैसी भयंकर आपदा से बचने के लिए आज फिर वैसा ही कुछ करने की जरूरत है। है न !
#अजय बोकिल