क्या कांग्रेस का खोया राजनीतिक आत्मविश्वास लौटने लगा है? क्या दो मीडिया संस्थानों के हालिया चुनावी सर्वे ने उसे मुगालते में ला दिया है? या फिर कांग्रेस को लगने लगा है कि मोदी सरकार के दिन जल्द ही लदने वाले हैं? ये तमाम सवाल इसलिए क्योंकि पिछले कई चुनावों में अपने विवादास्पद बयानों से कांग्रेस को निपटाने वाले मणिशंकर अय्यर का निलंबन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रद्द कर उनकी सदस्यता बहाल कर दी है। दूसरे, सिद्धू की पाकिस्तान यात्रा और वहां के सेनाध्यक्ष के गले मिलने पर भाजपा के हमलों को कांग्रेस ने कोई खास तवज्जो नहीं दी। तीसरे, लड़ाकू राफेल विमान खरीदी घोटाले को कांग्रेस ने शुरूआती असमंजस के बाद अब जोरदार ढंग से जनता के बीच ले जाने का ऐलान किया है। चौथे, पार्टी अागामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की दिशा में आगे बढ़ रही है।
इससे यह संकेत मिल रहा है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को जितना कमजोर समझा जा रहा था, वह उतनी है नहीं। इसकी वजह राहुल के नेतृत्व की सक्षमता कम, भाजपा की गलतियां और सियासी एरोगेंस ( उद्दंडता) ज्यादा है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी ‘एकला चलो रे’ नीति के प्रतिकूल परिणाम देखने के बाद अटलजी की ‘मिल के चलो रे’, वाली नीति पर शिफ्ट होने की कोशिश कर रही है। हालांकि इस नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए पार्टी के शीर्ष नेताअों को अपना अहंकार छोड़ना होगा। यह मान लेना भी आसान नहीं है कि हम अपने दिमाग और दुराग्रह से जो कुछ भी करते रहे हैं, वह पूरी तरह सही नहीं था। यूपी विधानसभा चुनाव तक ( कुछ अपवादों को छोड़कर) मिल रही लगातार जीत ने भाजपा को मुगालते में ला दिया था। यह मुलम्मा अब हकीकत के झटकों से उतरने लगा है। यह बहस भी हाशिए पर जाती दिख रही है कि अगले विधानसभा व लोकसभा चुनाव एक साथ और केवल मोदी के चेहरे पर होंगे। खासकर गुजरात विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद जो काबिल- ए- गौर फर्क आया है, वह है कांग्रेस का कुछ हद तक लौटता आत्मविश्वास। यही सिलसिला हमें कर्नाटक में भी दिखा। आगे होने वाले विधानसभा चुनाव के एक टीवी चैनल व लोकसभा के एक मीडिया संस्थान के सर्वे ( भले वे प्रायोजित हों) भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
ताजा घटनाएं भी कुछ यही बयान करती हैं। भाजपा से नाराज होकर कांग्रेस में शामिल हुए और बाद में पंजाब की अमरिंदर सरकार में मंत्री बने नवजोत सिंह सिद्धू पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में गए। उनकी पार्टी ने इस मामले में मौन रवैया अपनाया। सिद्धू मंत्री हैं और कोई मंत्री केन्द्र सरकार की अनुमति के बगैर विदेश नहीं जा सकता। अर्थात वे मोदी सरकार की मंजूरी से ही वहां गए, भले ही व्यक्तिगत हैसियत से गए हों। लेकिन सिद्धू ने जिस ढंग से पाकिस्तान में बर्ताव किया, उससे भाजपा को राहुल गांधी पर हमला करने का मौका िमला। लेकिन खुद राहुल और उनकी पार्टी ने इस हमले का ठीक से जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा। पार्टी को शायद लगता है कि सिद्धू के बहाने पाक में कांग्रेस की स्वीकार्यता बढ़ी है। इसके दूरगामी नतीजे आ सकते हैं। खुद सिद्धू ने भी भाजपा की आलोचना को घास नहीं डाली और पाक में जैसा मन चाहा, किया और खुद को शांति दूत बताया। इसका अर्थ यही है कि कांग्रेस सिद्धू के इस बर्ताव में कोई खास राजनीतिक नुकसान नहीं देखती। हालांकि यह जरूर हो सकता है कि ताजा विवाद के बाद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिद्धू को निपटा दें।
लेकिन सिद्धू से भी ज्यादा सांकेतिक घटना मणिशंकर अय्यर की कांग्रेस में वापसी है। 77 वर्षीय मणि पूर्व डिप्लोमेट तथा पीवी. नरसिंहराव के जमाने में कांग्रेस में प्रवेश करने वाले नेता हैं। वे यूपीए 1 और 2 में मंत्री भी रहे। लेकिन उनकी पहचान उनके विवादास्पद बयानों के कारण ज्यादा रही है। मणि घोर मोदी और भाजपा विरोधी माने जाते हैं। मणि के मोदी से जुड़े बयानों में एक तरह की कटुता टपकती है। उन्होने लोकसभा चुनाव के पूर्व नरेन्द्र मोदी को ‘चायवाला’ कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई थी। लेकिन खुद ही खेत रहे। इसी तरह गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान मणि ने मोदी को ‘नीच’ कहकर कांग्रेस और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। इस टिप्पणी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मणि को फटकार भी लगाई थी। इस हिसाब से वे कांग्रेस के ‘दुश्मन’ और भाजपा के ‘दोस्त’ ही साबित हुए हैं। हाल में उन्होने मोदी द्वारा गुजरात दंगों के दौरान मारे गए मुसलमानों को लेकर की गई एक टिप्पणी को मणिशंकर अय्यर ने फिर से जिंदा करने की कोशिश की। इसके लिए भी उन्हें आलोचना का शिकार बनना पड़ा।
ऐसे में मणिशंकर अय्यर अगर कांग्रेस को फिर ‘असेट’ लगने लगे हैं तो यह ध्यान देने वाली बात है। मणि के निलंबन को समाप्त करने की सिफािरश कांग्रेस की अनुशासन समिति ने की, जिसे राहुल गांधी ने मान लिया। इस कदम के बाद भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने टिप्पणी की कि इससे कांग्रेस का असली चेहरा सामने आ गया है। लेकिन कांग्रेस इस हमले से बेफिकर है।
तो क्या यह माना जाए कि कांग्रेस अब वह हर कदम उठाएगी, जो भाजपा को चुभेगा? मणि की वापसी इस मायने में प्रतीकात्मक है। उन्हें कांग्रेस में क्या जिम्मेदारी दी जाएगी, यह बाद में साफ होगा, लेकिन भाजपा पर तीखे और तिलमिलाने वाले हमले करने की जो स्वैच्छिक जिम्मेदारी मणि ने ले रखी है, उसमें शायद ही कोई बदलाव हो।
मणि की कांग्रेस में वापसी और सिद्धू मामले में कांग्रेस का अविचलित रहना यही संदेश दे रहा है कि पार्टी को लगने लगा है कि अगले चुनाव में एनडीए का किला ढहने वाला है। इस संभावना को इसलिए भी बल मिल रहा है कि मोदी शाह अब अपने सहयोगियों को पटाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के क्षत्रपों को पहले की तुलना में ज्यादा तवज्जो मिलने लगी है। ‘हम ही सर्वज्ञ’ का तेवर कुछ बदलने लगा है। उधर हो सकता है कि कांग्रेस अभी से मुगालते में आ गई हो। क्योंकि मणि जैसे खिलाड़ी कब राजनीति के मैदान में सेल्फ गोल कर बैठें, कोई नहीं जानता। फिर भी कांग्रेस यह खतरा उठा रही है तो इसके पीछे कुछ तो बात है।
#अजय बोकिल