शूद्र

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salil saroj
मैं पैदा इंसान अवश्य हुआ
पर
शूद्र होना ही मेरी नियति थी
सवर्ण समाज से मेरी व्यथित विसंगति थी
इतिहास दर इतिहास
काल-कलुषित सर्वथा मेरी तिथि थी
एकलव्य,कर्ण, चंद्रगुप्त के विजयध्वजों पे भी
अपमान की कई सदियों बीती थी
किसने अपने स्वेदों में भी शूद्रों को हिस्सा माना है
घर,बर्तन,कुएँ, चौराहे बाँटने का रिवाज जाना पहचाना है
मल-मूत्र की व्याकरण के ही ये हक़दार
वेद,पुराण,ग्रंथ,मनुस्मृति सबको यही तो समझना है
राजतंत्र,प्रजातंत्र,स्वतंत्र या परतंत्र
हर तंत्र यह समझने में असमर्थ है
जो करे सेवा तत्पर होके वही अधम और अनर्थ है
शिक्षा,दीक्षा,धर्म,ज्ञान सब जाति के आगे व्यर्थ हैं
सामाजिक रचनाओं में कितनी इनकी हिस्सेदारी है
गर कुछ भी नहीं,तो ये किसकी जिम्मेदारी है
कभी सत्ता,कभी ताकत,कभी मद तो कभी नीतिगत अलगाव
इनके अधिकारों पे किसकी अवैध जागीरदारी है
समय का व्यूह घूम फिर कर वही परिणीति पाता है
इतिहास भेष बदल-बदल कर खुद को ही दोहराता है
कल तक भाषा,बोली,खान-पान,पहनावे में
तो आज नौकरी,पेशे,न्याय,सम्मान और प्राण पे सूली गड़ जाता है
ये भाषणों के झूठे वायदे बनकर बिकते रहे
बहुत कोशिशों के वावजूद अलग-थलग ही दिखते रहे
कैसा घर,कैसा समाज,कैसा देश-सब अपरिचित
इन सबने जो द्वेष सिखाया, ये बस वही सीखते रहे
इसी संशय में शूद्र जीवन का सूर्यास्त आ गया
कि अब तो बराबरी का मौका मिलेगा ग्रस्त आ गया
वही घुटन,वही कोफ़्त,वही घिन्न और वही आत्मग्लानि
से थक कर चूर,अपनी बेगैरत ज़िन्दगी से त्रस्त आ गया
#सलिल सरोज

परिचय

नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011),  जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।

प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।

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