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ज़ुबां पे कैसे आता मेरे इश्क का फसाना,
उसे वक्त ही नहीं था जिसे चाहा था सुनाना,
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मेरे साथ घूमते हैं पूरी रात चाँद-तारे,
इनका भी नहीं है क्या मेरी तरह ठिकाना,
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आज़मा ले शौक से तू गैरों की भी वफाएँ,
कहीं भी नहीं मिलेगा मुझ सा तुम्हें दीवाना,
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तलाश-ए-ज़िंदगी में दर-दर भटक रहा हूँ,
तुमको कहीं मिले तो मुझको ज़रा बताना,
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क्या चीज़ ये जवानी तूने खुदा बनाई,
यही जागने का मौसम यही नींद का ज़माना,
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तेरे इश्क ने दिए हैं वस्ल-ओ-फिराक दोनों,
इक पल में आह भरना इक पल में मुस्कुराना,
भरत मल्होत्रा।
परिचय :-
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
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