साहित्य-मेरी नजर में

0 0
Read Time6 Minute, 9 Second
vani barthakur
      साहित्य समाज का दर्पण है यह तो हमें अभी कहना नहीं पड़ेगा । साहित्य जाति धर्म का वाहक है । साहित्य के बिना हम किसी जाति संस्कृति अथवा धर्म को समझ नहीं पायेंगे ।
     महान हिंदी साहित्यकार माननीय मुंशी प्रेमचंद जी के कहना है “जिस साहित्य में हमारी रुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हम में गति और शांति पैदा न हो, हमारा सौन्दर्य प्रेम न जागृ्त हो, जो हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय पाने की सच्ची दृढ़ता उत्पन्न न करे, वह आज हमारे लिए बेकार है। वह साह‍ित्य कहलाने का अधिकारी नहीं।” अर्थात साहित्य से हमें तृप्ति मिलना चाहिए, साहित्य में सौन्दर्य और प्रेम जागरूक होना चाहिए । साहित्य में कठिनाईयों पर विजय पाना है ।
      मेरी विचार में मुंशी प्रेमचंद जी के विचार से सहमत हूँ । साहित्य ही है जिससे हम मरते हुए जाति तथा धर्म को पुनर्जीवित कर सकते है । यह तब संभव होगा जब साहित्य में रस सौंदर्य के साथ साथ सत्यता हो ।
    महामानव महात्मा गांधी कहते है “साहित्य वह है जिसे चरस खींचता हुआ किसान भी समझ सके और खूब पढ़ा-लिखा भी समझ सके।” अर्थात साहित्य हमेशा सरल और चरस खींचता हुआ होना चाहिए, ताकि साधारण लोग भी समझ सके और पढ़े-लिखे लोग भी समझ सके ।
      इसलिए हम कह सकते है कि साहित्य एक समाज एक जाति एक धर्म का दर्पण है ।  एक साहित्यिक अक्सर अपनी ही संस्कृति धर्म तथा क्षेत्र में प्रतिफलित विषय को ही ध्यान में रखकर सृजन करते है । जैसे दिन व दिन समाज व्यवस्था ,रहने का तरीका ,लोगो में आपसी भाषा धर्म के मिल मिलाप होने लगे है ठीक उसी प्रकार साहित्य में भी अलग अलग साहित्य के मिश्रण होने लगे हैं । ठीक उसी प्रकार साहित्य सृजन के व्यवहारिक भाषाओ में भी मानक शब्द व्यवहार होने लगे हैं, ताकि लोगो को आसानी से समझमें आए। अगर हमें हमारे साहित्य को जीवित रखना है और सभ्यता की दौड़ में अन्य जातियों की बराबरी करना है तो हमें श्रमपूर्वक बड़े उत्साह से सत्साहित्य का उत्पादन और प्राचीन साहित्य की रक्षा करनी चाहिए। क्योंकि इतिहास पर ही वर्तमान जन्मा है ।  जब अंतरजगत का सत्य बहिर्जगत के सत्य के संपर्क में आकर संवेदना या सहानुभू‍ति उत्पन्न करता है, तभी साहित्य की सृष्टि होती है। साहित्य साहित्यकार के हृदय की प्रतिनिधि है । सच्चे साहित्यकार तो साहित्य का सृजन अपनी एकान्त चिंतन से उत्पन्न करते हैं ।
     लेकिन अभी ऐसा समय आ गया है कि दिन व दिन साहित्य विलुप्त होने लगा है । साहित्य अब विकृत रूप धारण करने लगे हैं । आधुनिकता में पदार्पण करने की धुन में एक एक भारतीय भाषा के साहित्य मृत्यु के दरवाजे पर खड़े होने लगे हैं । हमें ध्यान रखना हैं, अगर साहित्य तथा भाषा ही मर गए तो उस जाति का अस्तित्व ही नहीं रहेगा । आजकल के युवा पीढ़ी तो बहुत ही होश और जोश से लिख रहे है, लेकिन वे ध्यान रखें कि अपनी भाषा व संस्कृति अपभ्रंश ना हो और हमेशा सकारात्मक सोच के साथ ही सृजन करें, बस आप सभी इसमें साथ दें, यही आप सबसे विनती है ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में  शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है। 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

कहाँ गए भगवान्

Wed Aug 1 , 2018
कहाँ गए भगवान् सुना है बड़े बुज़ुर्गों से कण कण में बसते हैं भगवान पर न जाने मंन क्यों सोच रहा कि कलयुग में कहाँ गए भगवान जब सुनती थी दादी और नानी कोई किस्सा या कोई कहानी हर किस्से में था यही बखान कण कण में बसते है भगवान […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।