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जब ना लिख पाया कोई भी,अपनी किताब ए गुनाह ।
हमने कर ली तैयारी लिखेंगे ऐसा जो खुद को कर ले फनाह ।।
अपने ही माँ बाप के दर्दो को मैं बाट ही ना पाया ।
जब जरूरत पड़ी उन्हें,मैं अपनी सहूलियत से उनके काम आया।।
जिन्होंने मुझे बड़ा करने में अपने बहुत से सपनो को कर दिया फनाह ।
जब भी काम करने पड़े उनके मेरा मनवा रहा बड़ा ही अनमना।।
अब दिल से चाहता हूँ कि मैं अपने माँ बाप के काम आओ ।
पर वो जो हर कठिनाई में साथ थे मेरे अब उन्हें कहाँ से लाओ।।
पिता की गोदी और माँ का आँचल जब मुझ पर छाया था।
एक बस वही समय था जब मैं खुद पर इतराया था।।
#नीरज त्यागी
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