शादी के पहले भी बिटिया के
माथे बिंदिया सजती थी
नाक में नथनी लटकती थी
होंठों पे लाली लगती थी
हाथों में चूड़ी खनकती थी
मेहंदी ख़ूब रचती थी
पैरों में पायल भी छनकती थी
महावर पैरों में तब भी सजता था
शादी के बाद बना
मंगलसूत्र सुहाग की निशानी
माँग में सिंदूर सज़ा
पैरों में सजी प्यारी बिछिया
सुहाग की चूनर ओढ़
बिदा हुई बिटिया रानी
फिर कैसी ये *रीत* बनाई भगवन
वैधव्य जीवन के आते ही
सब कुछ एक पल में छिन जाता
सिंदूर , मंगलसूत्र , बिछिया , महावर साथ ही सारा श्रिंगार
नारी का उतर जाता
ये क्यों सब कुछ
सहती हर दम नारी है
जबकि पड़ती विपदा उस पर भारी
कैसे ये समाज के क़ायदे क़ानून हैं
अदिति रूसिया
वारासिवनी