सौरमंडल की सैर

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rinkal sharma
सौरमंडल की हम संतान
अलग रंग और अलग है नाम….(2)
सबसे पहला ,बड़ा और पीला
मैं सूरज हूँ आग का गोला
दूजा  में बुध सूरज के पास खड़ा हूँ
दिखने में छोटा पर बलवान बड़ा हूँ
तीजा मैं शुक्र हूँ बड़ा मज़ेदार
रहता  गरम  मगर हूँ चमकदार
चौथी मैं पृथ्वी मेरा रंग है नीला
मुझ पर ही होती जीवन लीला
पांचवा मैं मंगल हूँ मालामाल
नरम मेरी मिट्टी रंग है लाल
छठा मैं बृहस्पति हूँ  बेमिसाल
गैसों का  गोला , बड़ा ही विशाल
साँतवा मैं शनि मेरी बात अनूठी
चारों ओर पहनू मैं अंगूठी
आठवां अरुण मैं हु रंगीला
सत्ताईस उपग्रहों से रहूँ सजीला
नवां वरुण मेरी नीली शान
हूँ सबसे दूर, शीतल मुस्कान
सौरमंडल की हम संतान
अलग रंग चाहे अलग है नाम
पर हम सृष्टि का आधार
हम ही है ब्रह्माण्ड की जान
#रिंकल शर्मा
परिचय-
नाम – रिंकल शर्मा
(लेखिका, निर्देशक, अभिनेत्री एवं समाज सेविका)
निवास – कौशाम्बी ग़ाज़ियाबाद(उत्तरप्रदेश)
शिक्षा – दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक , एम ए (हिंदी) एवं फ्रेंच भाषा में डिप्लोमा 
अनुभव –  2003 से 2007 तक जनसंपर्क अधिकारी ( bpl & maruti)
2010 – 2013 तक स्वयं का स्कूल प्रबंधन(Kidzee )
2013 से रंगमंच की दुनिया से जुड़ी । बहुत से हिंदी नाटकों में अभिनय, लेखन एवं मंचन किया । प्रसार भारती में प्रेमचंद के नाटकों की प्रस्तुति , दूरदर्शन के नाट्योत्सव में प्रस्तुति , यूट्यूब चैनल के लिए बाल कथाओ, लघु कथाओंं एवं कविताओं का लेखन ।  साथ ही 2014 से स्वयंसेवा संस्थान के साथ समाज सेविका  के रूप में कार्यरत।

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मुसलमान : वक़्त बदला, हालात नहीं

Sat Jul 14 , 2018
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाक़ात कर रहे हैं। अगर वे मुसलमानों के हालात जानने के लिए ऐसा कर रहे हैं, तो उन्हें वरिष्ठ पत्रकार फ़िरदौस ख़ान की ये विशेष रिपोर्ट ज़रूर पढ़नी चाहिए। देश को आज़ाद हुए सात दशक बीत चुके हैं। इस दौरान बहुत कुछ बदल गया, लेकिन अगर कहीं कुछ नहीं बदला है, तो वह है देश के मुसलमानों की हालत। यह बेहद अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के सात दशक बाद भी मुसलमानों कीहालत अच्छी नहीं है। उन्हें उन्नति के लिए समान अवसर नहीं मिल रहे हैं। नतीजतन, मुसलमान सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से बेहद पिछ्ड़े हुए हैं। संपत्ति के मामले में भी मुसलमानों की हालत बेहद ख़स्ता है। ग्रामीण इलाक़ों में 62.2 फ़ीसद मुसलमान भूमिहीन हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 43 फ़ीसद है। वक़्फ़ संपत्तियों यहां तक की क़ब्रिस्तानों पर भी बहुसंख्यकों का क़ब्ज़ा है। शर्मनाकबात तो यह भी है कि इन मामलों में वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारियों की मिलीभगत शामिल रहती है। मुसलमानों को रोज़गार के अच्छे मौक़े भी बहुत कम ही मिल पाते हैं। इसलिए ज़्यादार मुसलमान छोटे-मोटे कामधंधे करके ही अपनागुज़ारा कर रहे हैं। साल 2001 की जनगणना के मुताबिक़ मुसलमानों की आबादी 13.43 फ़ीसद है, लेकिन सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बहुत कम है। सच्चर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक़ सुरक्षा बलों में कार्यरत 18लाख 89 हज़ार 134 जवनों में 60 हज़ार 517 मुसलमान हैं। सार्वजनिक इकाइयों को छोड़कर सरकारी रोज़गारों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व महज़ 4.9 फ़ीसद है। सुरक्षा बलों में 3.2 फ़ीसद, भारतीय प्रशासनिक सेवा में 30, भारतीयविदेश सेवा में 1.8, भारतीय पुलिस सेवा में 4, राज्यस्तरीय विभागों में 6.3, रेलवे में 4.5, बैंक और रिज़र्व बैंक में 2.2, विश्वविद्यालयों में 4.7,  डाक सेवा में 5, केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में 3.3 और राज्यों के सार्वजनिक उपक्रमों में10.8 फ़ीसद मुसलमान हैं। ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले 60 फ़ीसद मुसलमान मज़दूरी करते हैं। शिक्षा के मामले में भी मुसलमानों की हालत बेहद ख़राब है। शहरी इलाक़ों में 60 फ़ीसद मुसलमानों ने कभी स्कूल में क़दम तक नहीं रखा है। हालत यह है कि शहरों में 3.1 फ़ीसद मुसलमान ही स्नातक हैं, जबकि ग्रामीण इलाक़ों में यह दरसिर्फ़ 0.8 फ़ीसद ही है। साल 2001 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ मुसलमान दूसरे धर्मों के लोगों के मुक़ाबले शिक्षा के मामले में बहुत पीछे है। देश के तक़रीबन सभी राज्यों में कमोबेश यही हालत है। शहरी मुसलमानों की साक्षरताकी दर बाक़ी शहरी आबादी के मुक़ाबले 19 फ़ीसद कम है। ग़ौरतलब है कि साल 2001 में देश के कुल 7.1 करोड़ मुस्लिम पुरुषों में सिर्फ़ 55 फ़ीसद ही साक्षर थे, जबकि 46।1 करोड़ ग़ैर मुसलमानों में यह दर 64.5 फ़ीसद थी। देश की6.7 करोड़ मुस्लिम महिलाओं में सिर्फ़ 41 फ़ीसद महिलाएं साक्षर थीं, जबकि अन्य धर्मों की 43 करोड़ महिलाओं में 46 फ़ीसद महिलाएं साक्षर थीं। स्कूलों में मुस्लिम लड़कियों की संख्या अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के मुक़ाबले तीनफ़ीसद कम थी। 101 मुस्लिम महिलाओं में से सिर्फ़ एक मुस्लिम महिला स्नातक है, जबकि 37 ग़ैर मुसलमानों में से एक महिला स्नातक है। देश के हाईस्कूल स्तर पर मुसलमानों की मौजूदगी महज़ 7.2 फ़ीसद है। ग़ैर मुस्लिमों के मुक़ाबले44 फ़ीसद कम मुस्लिम विद्यार्थी सीनियर स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं, जबकि महाविद्यालयों में इनकी दर 6.5 फ़ीसद है। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाले मुसलमानों में सिर्फ़ 16 फ़ीसद ही स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कर पाते हैं।मुसलमानों के 4 फ़ीसद बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं, जबकि 66 फ़ीसद सरकारी स्कूलों और 30 फ़ीसद बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। फ़िरदौस ख़ान Post Views: 1,122

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।