ना कुछ सोचो ना कुछ करो, क्योंकि
चाय के प्यालों से होंठों का फासला हो गयी है जिंदगी।
भूख से बिलखती रूहों को मत देखो
शान-औ-शौकत के भोजों१ में खो गयी है जिंदगी।
बस सहारा ढूढ़ते, सड़क पे फट गए जूतों से क्या
सुबह शाम बदलती गाड़ियों का कारवाँ हो गयी है जिंदगी।
तन पे फटे हुए कपडे मत देखो
नए तंग मिनी स्कर्ट सी छोटी हो गयी है जिंदगी।
पानी की तड़प भूल कर
महगीं शराब की बोतलों में खो गयी है जिंदगी।
फुटपाथ पे सोती हजारों निगाहों की कसक छोड़ के
इक तन्हा बदन लिए, हजारों कमरों में सो गयी है जिंदगी।
हजारों सवाल खामोश खड़े; बस
सुलगती सिगरेट के धुएं सी हो गयी है जिंदगी।
#डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’