उद्यापन

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surekha sharma

देव को कालेज जाते देख भगती ने   कहा, “देव बेटा, तुम्हें याद है ना! आने वाली एकादशी पर उद्यापन करना है.सोचती हूं जितना जल्दी हो सके यह कार्य भी निपटा दूँ. इस बूढ़े शरीर में अब ज्यादा जीने की शक्ति नहीं  रही.”  “ऐसा क्यों कहती हो माँ?  मुझे सब याद है,आप चिन्ता ना करें, सब सामान समय पर आ जाएगा. अच्छा है इसी बहाने सबसे मिलना जुलना भी हो जाएगा वैसे तो आज भाग -दौड़ की जिन्दगी में  किसी के पास किसी को मिलने का समय ही कहाँ  है?”मैं  बोला.
“अच्छा माँ..,हम अब चलते हैं. शाम को बाजार से सारा समान ले आएंगे.” अपनी पत्नी को आवाज लगाते हुए,”पूजा, जल्दी करो देर हो रही है.अरे शिवा को कहाँ ले जा रही हो? इसे माँ के पास ही छोड़ दो.माँ  सम्भालती ही है ना! ”
” नहीं, आज से प्ले स्कूल में  जाएगा.मैंने फीस भर दी है.तुम्हें चिन्ता करने की जरूरत नहीं.”  कहते हुए पूजा ने अपना पर्स उठाया और जाकर कार में  बैठ गयी.देव ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए पूछा,”अचानक शिवा को प्ले स्कूल में  डालने का विचार तुम्हारे मन में  कैस आया?”.
“अभी मैं बात करने के मूड में नहीं  हूं,चुपचाप चलो”  पूजा बोली.
देव ने देखा आज पूजा कुछ ज्यादा ही गम्भीर है.शायद कालेज के काम से परेशान हो.शिवा को स्कूल में छोड़कर दोनों कालेज में अपनी-अपनी कक्षाओं में पढ़ाने चले गये.पूजा व देव दोनों एक ही कालेज में पढ़ाते थे.शाम को वापिस आते हुए भी पूजा का मूड बिगड़ा हुआ सा ही था.फिर भी देव ने कहा,”पूजा, माँ को जो भी सामान चाहिये उसकी लिस्ट बना देना ,जिससे उस दिन कोई परेशानी ना हो.माँ यह सब पूजा-पाठ हम की सुख शान्ति  के लिए  ही करवाना चाहती   हैं.
“माँ को यह सब करने की क्या जरूरत है? हजारों रुपये लग जाएंगे. माँ हमें पैसों का पेड़ समझती है,जब जी चाहा झाड़ लिए. कभी भागवत कथा,कभी सत्संग तो कभी ब्राह्मणों  को भोज और अब ये नया बखेड़ा उद्यापन. सारा दिन मर खप कर कमाई बुढ़िया के पूजा-पाठ के लिए.” पूजा सारे रास्ते बड़बड़ाती रही.उसके व्यंग्य बाण देव के हृदय को बींधते रहे. माँ  को किसी भी हाल में मना नहीं कर सकता,वे जो कहेंगी हर हाल में उसे पूरा करना है,पर पूजा को किस तरह समझाया जाए कि मेरे अलावा माँ  का है कौन ?दोनो में कैसे सामंजस्य स्थापित किया जाए?यही सोचते-सोचते वह घर तक पहुँच गया .
घर के वातावरण को कैसे खुशहाल रखा जाए,  रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे भी उसके मन में  यही विचार चलते रहे.पूजा पढ़ी लिखी होने के बाद भी माँ की भावनाएं नहीं समझ रही थी.अब वह कैसे समझाए कि माँ  ने अपने जीवन की आहुति देकर ही उसके जीवन को संवारा है.माँ किसी तपस्विनी से कम नहीं .उनकी तपस्या के परिणाम स्वरूप ही आज उन्हें जो थोड़ी-सी शीतल छांह मिली है उसे मैं कैसे छीन लूं? मैंने कोई अनोखा सुख भी माँ को नहीं दिया जिसकी वे अधिकारी हैं .मां की इच्छा थी कि उनकी पसन्द की लड़की से ही मेरा विवाह हो.अपने हाथों से सेहरा सजाए .यह खुशी भी मैंने उनसे छीन ली,पूजा से प्रेम विवाह करके.माँ ने अपनी सूझ बूझ से सबको राजी कर लिया था.मेरी खुशी में  ही माँ  ने अपनी खुशी समझ ली थी.जबकि यह असम्भव था.ग्रामीण परिवेश में रहने वाले के लिए प्रेम विवाह करना नामुमकिन था. वह माँ ही थी जिसने दादा-दादी के साथ-साथ मामा के परिवार को भी राजी कर लिया था.
पूजा के हंसमुख स्वभाव से मैं इतना प्रभावित हुआ कि मैं उसकी ओर खिंचता चला गया,यही आकर्षण प्रेम विवाह में  बदल गया.विवाह के तीन चार वर्षों तक सब ठीक चलता रहा.मुझे याद है  शिवा के जन्म की खबर सुनते ही माँ मामा जी को साथ लेकर अस्पताल में  ही मिलने चली आई थी.जब पूजा घर आ गयी तो माँ  हवन करा कर गांव वापिस जाने लगी तो पूजा ने माँ को रोकते हुए कहा था ,”माँ, ,अब आप कहीं नहीं जा सकती.आप हमारे ही साथ रहेंगी.आपने हमारे लिए बहुत कुछ किया है,अब हमारी बारी है. हमें भी तो सेवा करने का मौका दीजिए?”
हैरान होने की अब मेरी बारी थी.मै कभी पूजा को तो कभी माँ  को देख रहा था.पूजा के आग्रह को टाल नहीं सकी माँ और हमारे पास ही रुक गयीं. माँ  सच में ही सरल व शान्त चित्त थी.मैं तो चाहता ही था कि अब माँ हमारे साथ ही रहे.हर समय मेरी कोशिश रहती कि माँ खुश रहे.
उस समय मैं पूजा के स्वार्थी स्वभाव का अन्दाजा भी नहीं लगा सका.माँ को रोकने के पीछे उसका अपना मकसद था अपने नवजात शिशु को पालने के लिए नौकरानी की कमी पूरी करना.वह जानती थी शहरों में नौकर भरोसे के नहीं मिलते.
ज्यों ज्यों शिवा बड़ा होने लगा पूजा ने उसे माँ  से दूर रखना शुरू कर दिया.उसकी तोतली बोली सुनने को माँ   तरस जाती.शिवा के साथ माँ इतना खुश रहने लगीं थी कि वे  पूजा -पाठ करना भी भूल जाती.उनका कहना था कि बच्चों में ही भगवान बसता है.बच्चों संग समय बिता लिया तो समझो प्रभु दर्शन हो गये.
धीरे -धीरे पूजा का व्यवहार माँ के प्रति अजीब-सा हो रहा था.मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.एक दिन तो पूजा ने हद ही कर दी.माँ के पास सोए हुए शिवा को जबरदस्ती उठाकर ले गयी.जब छोटा था तो वह दिन रात माँ  के पास ही रहता था,पर अब ऐसा क्या हुआ कि पूजा उस पर माँ का साया भी नहीं पड़ने देना चाहती. यह सब देखकर मेरी सहनशक्ति खत्म होती जा रही थी. आखिरकार पूजा से इसका कारण पूछना ही पड़ा.पूछते ही वह आग बौखला होते हुए बोली,”तुम जान कर भी अनजान बन रहे हो,देख नहीं रहे वह माँ  की तरह ही बोलने लगा है. मैं नहीं चाहती वह गाँव की भाषा बोले.माँ के पास रहेगा तो वह हिन्दी में ही बोलेगा.”
“पूजा मैं भी तो गाँव में ही पला- बढ़ा हूं,बल्कि मैट्रिक तक की पढ़ाई भी मैंने गाँव में  ही की है.”   ‘तभी तो मैं नहीं चाहती शिवा भी आपकी तरह
हिन्दी में  बात करे.बल्कि तुम्हें तो उसके साथ अभी से इंग्लिश में  बात करनी चाहिये, ,आखिरकार. उसे इंग्लिश माध्यम स्कूल में ही तो एडमीशन दिलाना है.” पूजा बिना सोचे-समझे बोले जा रही थी.यह सब सुनकर मैं कड़वे घूंट पीकर रह गया.अब समझ आया कि माँ मात्र केवल बच्चा पालने वाली आया थी.
माँ को उदास देखकर दो पल के लिए उनके पास बैठा गया तो माँ बोली,बेटा, मैं कुछ दिन के लिए गाँव जाना चाहती हूं.” मैनें   उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की.मैं भी चाहता था कि माँ गाँव में अपनों के बीच कुछ दिन खुशी से रह ले.एक दिन पार्क में खेलते -खेलते शिवा ने बड़ी मासूमियत से पूछा,”पापा !दादी कब आयेंगी ? जब वो यहाँ   रहती थी तो मुझे हर रोज पार्क में  लेकर आती थीं.आपको और मम्मी को तो टाइम ही नहीं मिलता”. “जल्दी ही आ जायेंगी,’ .ना  कहकर मै उसका दिल नहीं दुखाना चाहता था.जबकि मैं जानता था वो नहीं आएंगी,क्योंकि जाते हुए उनकी आंखों में गहरा सूनापन देखा था मैनें .
समय अपनी गति से चलता रहा.वह किसी के लिए कहाँ रुकता है.कभी-कभी फोन पर ही माँ  से बात हो जाती थी.एक दिन मन बहुत ही दुखी था.माँ का ख्याल मन में बार-बार आरहा था.अगले दिन पूजा को बताकर मैं गाँव चला गया.वहाँ जाकर देखा तो माँ बहुत बीमार थीं.सूखकर कांटा हो गयी थी.मामा जी ही उनकी देखभाल कर रहे थे.दस -बारह दिन मुझे रुकना पड़ा.कई बार माँ ने वापिस जाने के लिए कहा. सिर पर हाथ फिराते हुए बोली,’बेटा तू मेरी चिन्ता ना कर,अब मैं ठीक हूं”. साथ चलने से माँ ने मना कर दिया.रात में  माँ के पांवों में तेल लगाते हुए सोचता रहा. माँ ने मेरे लिए कितने कष्ट सहे हैं, इस जन्म में तो मैं उऋण नहीं हो सकता.माँ  गाँव में अकेली रहकर कितने कष्ट उठा रही है. मैं उन्हें कोई सुख नहीं दे सका.मैं हीन भावना से भर उठा.
अगले दिन चंडीगढ़ जाने के लिए बस पकड़ी.बस की गति के साथ-साथ मन की गति ने भी अतीत में गति पकड़ ली. जब से होश सम्भाला था उसने माँ को कभी बिस्तर पर लेटे नहीं देखा था.सुबह से शाम तक खेतों में काम करना देर रात तक घर का काम निपटाना.सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह काम किया माँ ने.मामा बताते हैं कि मेरे जन्म से पूर्व ही पिता जी किसी असाध्य रोग से पीड़ित होकर स्वर्ग सिधार गये थे. मां ने ही माता व पिता दोनों का प्यार दिया.माँ नेअपनी खुशियों की आहुति देकर मेरे जीवन को संवारा.माँ  का एक ही सपना था मैं पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनूं.आज जो कुछ भी हूं इसका श्रेय माइ को ही जाता है.मेरे मन पर आज भी एक बहुत बड़ा बोझ है कि मैंने अपनी पसन्द से पूजा से विवाह किया,जबकि माँ पूजा को पसन्द करती है.विवाह पूर्व पूजा को अपनी स्थिति से अवगत करा दिया था.तब उसे कोई एतराज नहीं था.अब कैसे दोनों में सामंजस्य बिठाया जाए……?यही सोचते-सोचते कब सफर पूरा हो गया पता ही नहीं चला.
घर पहुँचा तो शिवा देखते ही मेरी गोदी चढ़ गयाऔर गालों पर हाथ फिराते हुए पूछा, पापा! दादी को नहीं लाए.दादी कब आएंगी….? ‘दादी जल्दी ही आएंगी ‘ मैंने  कहा. बाल सुलभ मन कितना निश्चल होता है,छल कपट उससे कोसों दूर रहता है. माँ की तबियत में सुधार न होने से दो दिन बाद ही मामा जी माँ को लेकर मेरे पास आ गये.पूजा को यह सब सहन नहीं हुआ और झगड़ा कर अपने घर चली गयी.पूजा के व्यवहार से माँ को बहुत कष्ट हुआ पर उन्होंने कुछ नहीं कहा।
अब माँ को दवा आदि देने की जिम्मेदारी मेरी थी.धीरे धीरे माँ का स्वास्थ्य ठीक होने लगा.माँ  हर समय पूजा को घर लाने के लिए कहती रहती,पर मैं चाहता था पूजा स्वयं आए.माँ ने अपना मन पूजा पाठ में लगा लिया.एक दिन पूजा स्वयं घर आ गयी,शायद यह माँ की पूजा-पाठ का ही परिणाम था.माँ ने उसक हृदय से स्वागत किया,पर पूजा के  स्वभाव में कोई अन्तर नहीं आया.
माँ  ने पूजा सामग्री मंगवाई तो पूजा ने बेमन से सामान लाकर दे दिया.रात को रसीद देते हुए बोली,”लो पूरे दो हजार का सामान आया है,अभी दक्षिणा आदि में  लगेंगे सो अलग. पता नही इन ढकोसलों में क्या रखा है? माँ को अपने व्रतों का उद्यापन करना है तो गाँव जाकर क्यों नहीं करती, हमें क्यों परेशान करती हैं? कालेज से छुट्टी लेनी पड़ेंगी सो अलग.”    “पूजा! माँ ये व्रत हमारी सुख शान्ति के लिए करती हैं, तुम शांत हो जाओ, धीरे बोलो, कहीं माँ  ना सुन ले.” मैंने पूजा को समझाते हुए कहा.
मैं ऐसे अन्धविश्वासों को नहीं मानती. पैसे खर्च करने का बहाना चाहिये. शहरों में  यह सब नहीं होता ,गाँव जाकर जो मरजी आए करें.” पूजा इतना जोर से बोल रही थी की माँ  ने सब सुन लिया था.मां निढ़ाल -सी बिस्तर पर लेट गयीं. पूरी रात उन्होंने करवटें बदलकर बिताई. मन ही मन कुछ निर्णय किया.मुझे कालेज के लिए तैयार होते देख बोलीं,  “देव बेटा, दान पुण्य करने का कुछ सामान गाँव में भी रखा है, मैं चाहती हूं वो सब गाँव से ले आऊं और सबको निमन्त्रण भी दे आऊं.” माँ  ने बहुत शान्त भाव से कहा.उन्होंने अपने मन की व्यथा मुझ पर जाहिर भी नहीं होने दी. “जैसा तुम ठीक समझो माँ “.न चाहते हुए भी मुझे कहना पड़ा.
माँ  ने सारा सामान पहले से ही बांध रखा था.कालेज जाते हुए मैंने माँ  को गाँव की सीधी बस में  बिठा दिया.
एक सप्ताह बाद फोन पर ही माँ  ने बताया कि आने वाले सोमवार को बड़ी एकादशी पड़ रही है.उसी दिन पूजा रखी है. “देव! तुम शिवा व बहू को लेकर समय पर आ जाना.सारा इन्तजाम हो गया है.” “ठीक है माँ  ,हम समय पर पहुँच जाएंगे… ”   “खुश रहो ….” मां बोली
माँ  को कह तो दिया,,पर पूजा जाने को तैयार. होगी या नहीं.फिर भी लेकर जाना हि होगा अन्यथा माँ का दिल  दुखेगा. रात को खाना खाते समय गाँव में  ही माँ के द्वारा उद्यापन करने की बात बताई तो खुशी के मारे पूजा उछल ही पड़ी”. उसे लगा कि चलो बहुत बड़ी समस्या हल हो गयी.पर जब साथ चलने को कहा तो गुस्से से उबलते हुए बोली “हम गाँव नहीं जाएंगे, शिवा की छुट्टी करवानी पड़ेगी सो अलग ,अब आप ही जाकर पुण्य कमा लें. माँ से बोल देना छुट्टी नहीं मिली.” “मैं झूठ नहीं बोलूंगा, माँ के लिए ना सही कम से कम मेरे लिए ही चलो.”  मैनें उसे समझाते हुए कहा..
“मैंने कहा ना! ना शिवा जाएगा ना ही मैं ….”.पूजा गुस्से में अपने कमरे में चली गयी. तभी शिवा बोला,’नहीं, मैं जरूर दादी के पास जाऊंगा’
“तुम कहीं नहीं जाओगे!” शिवा को घुरते हुए पूजा बोली.रोते हुए शिवा नाराज होकरअपने कमरे में  चला गया. पूजा शिवा को नाराज होते नहीं देख सकती थी सो उसने जाने का मन बना लिया.

जब देव पूजा और शिवा को लेकर गाँव पहुंचा तो वहाँ उत्सव जैसा माहौल था.गाँव के लोगो के साथ-साथ रिश्तेदारों को एक साथ देखकर मन ही मन खुश होते हुए अपने बड़ों के पांव छूकर आशीर्वाद लेने लगा.तब पूजा ने भी अपने संस्कारों का परिचय देते हुए सभी के पांव छूए.सभी ने अपने आशीष से उसकी झोली भर दी.सबसे आशीर्वाद लेकर तीनों माँ के पास पहुंचे तो  माँ  ने झुकते हुए अपने बच्चों को हृदय से लगाकर आशीर्वाद के रूप में  अपना सारा प्यार उन पर उंडेल दिया.पहली बार पूजा को अहसास हुआ कि  जो प्यार गाँव में है वह शहरों में कहाँ? शिवा को भी दादी से शिकायत करने का मौका मिल गया.दादी की गोदी में  चढ़कर बोला,”दादी हम आपसे नाराज हैं, अब आप हमारे साथ चलेंगी ना!”  ” हां  मेरा बेटा, मैं जरूर चलूंगी” कहकर उसके माथे को चूम लिया.
भगती ने सारी पूजा अपने बेटे व बहू से संकल्प करवा कर पूरी की.उसे अपने लिए कुछ नही चाहिए था.आज उसकी आंखों में संतुष्टि के साथ-साथ वो चमक भी थी जो आत्मिक खुशी से मिलती है.उसकी आंखों से लग रहा था जैसे इस उद्यापन के रूप में उसने अपने जीवन के सारे पुण्य – कर्म अपने बच्चों की झोली में डाल दिए हों.
ग्रामीण परिवेश में ममता व प्यार पाकर पूजा स्वयं को धन्य समझने लगी.उसने आगे बढ़कर माँ के पांव छूकर क्षमा मांगने को हाथ जोड़े तो माँ ने उसे अपनी ओर खींचकर गले से लगा लिया.माँ और पूजा के सुखद मिलन को देखकर मेरी आंखें नम हो गयी….सच में ही माँ  के द्वारा किए गये उद्यापन की शक्तिआज हम सबके समक्ष थी. तपस्विनी के रूप में  माँ  का चेहरा ओज से चमक रहा था……

#सुरेखा शर्मा
नाम –सुरेखा शर्मा ‘शान्ति’  (विद्यासागर)
        पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग( सी•बी•एस•सी•ई•स्कूल) सेेवानिवृृत 
शिक्षा -एम•ए•हिन्दी साहित्य (बीएड)
अभिरूचियां व उपलब्धियां—
•एस•सी•ई•आर•टी•गुरुग्राम द्वारा आयोजित शिक्षक प्रशिक्षण में समय-समय पर व्याख्यान।
  प्रकाशन –●रिश्तों का एहसास (कहानी संग्रह)
                 ●और दीप जल उठे (कहानी संग्रह) 
                  ●नन्ही कोपल ( बाल कविता संग्रह)
                   ●आओ पढें मनन करें( बाल एकांकी  संग्रह)
                   ●प्रतिनिधि कहानियाँ  (कहानी संग्रह )

●अरिहंत पब्लिकेशन के अन्तर्गत कक्षा नवम से बारहवीं तक सहायक पुस्तकें प्रकाशित।
●प्रवेशिका से कक्षा पाँच तक हिन्दी पाठ्यपुस्तक सी•बी•एस•ई•पाठ्यक्रम पर आधारित “मेरी हिन्दी रसमाला”(सी•एल•पब्लिकेशन 
●कविता/गीत ,बाल कविताएँ,कहानी, आलेख निबंध, समीक्षा, नाटक, नुक्कड़ नाटक,व्यंग्य आदि राष्ट्रीय पत्र /पत्रिकाओं में समय-समय पर प्रकाशित।
●साहित्यिक संगोष्ठियों में सहभागिता तथा विभिन्न काव्य मंचों से काव्य पाठ ।
●दिल्ली दूरदर्शन, जनता टी•वी•,हरियाणा एस•टी•वी•पर परिचर्चा व काव्य पाठ ।
सम्मान -अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा देश विदेश में सम्मानित 

संप्रति -•नीति आयोग (भारत सरकार) हिन्दी सलाहकार सदस्या।

            • अखिल भारतीय साहित्य परिषद् कार्यकारिणी सदस्या

             •हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी सलाहकार सदस्या

             • कादम्बिनी क्लब गुरुग्राम (संचालिका)
             •प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन(प्रयाग) गुरुग्राम -संयुक्त मंत्री

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।