राधा तुमको अब मै क्या बोलूं ।
क्यों मैं तुमरे आगे पीछे डोलूं।
पता नही क्या समझे दुनियां।
सो मन के भेद कहाँ पर खोलूं।
कान्हा तुम हो और हम है।
फिरकिस दुनियां का गम है।
मुझे कुछ भी दिखाई नही देता।
बस दुनियां सारी हम तुम है।
पता नही किस किसमे राधा तुम हो।
यहां वहां किस किस जगह तुम हो।
मेरी आँखों को कुछ तो रोग लगा राधे।
तुम कहीं नही फिर भी कहता तुम हो।
कान्हा मुझको देख रहे हो।
फिर नैनो को कोस रहे हो।
कभी जान लो मैं कैसी हूँ।
अपने मन से ही बोल रहे हो।
क्या मैं जानूँ राधे कैसी हो।
मुझको लगता मेरे जैसी हो।
क्या बदलेगा तेरा और मेरा ।
मैं जैसा हूँ तुम भी वैसी हो।
नाम~ मधुसूदन गौतम
पिता~श्री नन्दबिहारी शास्त्रीमाता~ श्रीमती सन्तोषशिक्षा~अधिस्नातकव्यवसाय~ व्याख्याताराजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय अटरू राजस्थानसाहित्यिक~ शौक के तौर पर कलम घिसाईविधा का नाम—कलम घिसाई