पाकिस्तान एक मुल्क है,
मुल्क जैसा मुल्क..
बाकी मुल्कों जैसा
लेकिन,
कुछ अलहदा
कुछ ज्यादा।
ज्यादा इस कदर,
कि एक लाल डोरी जो खिंची है
सीमा पर..
चमकती है बदस्तूर सियासतदानों की आँख में भी,
यह लाल डोरी..
प्राण डोरी भी है राजनीति की,
दलों की..
सियासतदानों की।
मुल्कों में बसे हैं जो लोग..
उनकी धमनियों में भी रोप दी गई हैं, यही लाल डोरियां..
धमनियां फड़कती हैं,
राष्ट्रवाद की परिभाषाएं नीले आसमान में तैरने लगती हैं।
जिनकी धमनियां नहीं फड़कती हैं,
वे सीधे तौर पर राष्ट्रद्रोही हैं..
जब भी आसन्न होता है
मुल्क में चुनाव,
लाल डोरी थोड़ी और
लाल की जाती है..
कसी जाती है थोड़ी और,
कसी जाती है बरबस मुल्क की अवाम
कसा जाता है राष्ट्रवाद
कसे राष्ट्रवाद में
संपन्न होते हैं चुनाव।
चुनाव आसन्न नहीं होते जब,
तब पाकिस्तान सिर्फ
एक मुल्क होता है,
बाकी मुल्कों जैसा आम मुल्क
और हम..
सार्क में एक मेज पर बैठ
शांति के कसीदे पढ़ते हैं..
बिरयानी खिलाते हैं,
राष्ट्रवाद चुपके-चुपके
बदला जा रहा होता है तब,
क्रिकेट के महासमर में।
#वीरेंदर भाटिया
काश हम इंसा नहीं है
मिलकर सरहद पार के दो पंछी
थे बहुत खुश,
काश ! हम इंसा नहीं हैं ।
हमारी कोई सरहद नहीं है
हमारा कोई मजहब नहीं है,
यह जमीनी इंसा नहीं बाँट सकता हमें
खुले आकाश में
विचरते हैं हम,
है नहीं कोई इसकी सरहद
प्रेम की बौछार करते हैं हम ,
आओ मिलकर होली मना लें
एक दूजे के जी भर रंग लगा लें,
हम नहीं कोई ज्ञानी विज्ञानी
हम तो हैं पंछी प्रेम दीवाने ,
हम नहीं तोड़ते किसी का घर
लाँघ कर देश विदेश की सीमाएं
आँगन से आँगन को- जोड़ते हैं हम।
दिवाली की मिठाई
और ईद की सैंवइयाँ
दोनों ही साथ-साथ खाते हैं हम।
बैठ कर हर मुंडेर पर
इस घर की रोटी
उस घर गिरा कर,
सर्व ज्ञानी इंसा को
प्रेम का मजहब- याद दिलाते हैं हम।
है शुक्रिया बहुत भगवान का
काश !
हम इंसा नहीं है।
निशा नंदिनी
तिनसुकिया, असम