0
0
Read Time41 Second
कल खुद को देखा आईने में और मैं डर गया
किसी का कद मेरे रिश्तों पे यूँ भारी पड़ गया
जिस शाख में सिमट कर ज़िंदगी गुज़ारी थी
आज वो जड़ समेत ही मिटटी से उखड गया
जिन हसीं पलों को समेटा था कल जीने को
वक़्त के तूफ़ान में ना जाने कब गुज़र गया
ताउम्र जो बात कहता रहा वो ज़माने भर से
हमने जब वही कहा तो हमसे ही बिफर गया
रात भर जाग कर जिसके दिन को बुनते रहे
हमें ही मालूम नहीं वो कहाँ और किधर गया
सलिल सरोजनई दिल्ली
Post Views:
372