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पहली बार लगा कि
पापा बूढ़े होने लगे हैं
हौसले तो बुलन्द हैं
कदम लड़खड़ाने लगे हैं
अब चलते चलते
वो थकने लगे हैं ।
पापा बूढ़े ………..
जिन कन्धों पर बैठ कर
घूमी रात दिन मै
आज वो कन्धे खुद
सहारा ढूँढने लगे हैं ।
पापा बूढ़े …….
आंखों से जिनकी
डरते थे हम सब
वो दुख में अब
रोने लगे हैं ।
पहली बार लगा कि
पापा बूढ़े होने लगे हैं ।
डाॅ0 ममता सिंह
एसोसिएेट प्रोफेसर
समाजशास्त्र विभाग
के०जी०के०(पी०जी०) कालेज
मुरादाबाद
स्थायी निवास- मुरादाबाद
कविताएँ ,गीत आदि लिखने का शौक
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