काम किसी के आए इंसान उसे कहते हैं,
दर्द पराया उठा सके इंसान उसे कहते हैं,
दुनिया एक पहेली कहीं धोखा कहीं ठोकर,
गिर के जो संभल जाए इंसान उसे कहते हैं।
संसार मुसाफिर खाना है सांसों का आना-जाना है,
सागर गहरा नाव पुरानी मौजों का आना जाना है,
व्यर्थ की चिंता क्यों करता है ऐ माटी के पुतले तू
जीवन बड़ा अनमोल है कष्टों का आना जाना है।
जख्म का दर्द जब हद से गुज़र जाता है,
तब हरेक पल पहाड़-सा नज़र आता है,
मन को कितना भी समझाओ ठीक होगा,
पर हर नया ज़ख्म उभर के कहर ढाता है।
पत्ते आँधियों का रूख भांप लेते हैं,
भांप के आँधियों का वेग माप लेते हैं,
कौन-सा शजर किस दिशा में गिरेगा,
उसकी आहट को चुपचाप नाप लेते हैं।
#मनोज कामदेव
परिचय : अनेक पुस्तकें लिखने के साथ ही सम्पादित भी कर चुके मनोज ‘कामदेव’ लेखन क्षेत्र में नया नाम नहीं है। 1973 में खैराकोट(उत्तराखंड) में आपका जन्म हुआ है,और भगतसिंह कालेज(दिल्ली विश्वविद्यालय)से बीए किया है। डी.आर.डी.ओ. में वरिष्ठ प्रशासनिक सहायक के पद पर कार्यरत होकर चन्दर नगर (गाजियाबाद) में निवासरत हैं।आपके प्रकाशित कविता संग्रह ‘मेरी कविताएं'(दिल्ली),’मेरा अंदाज़े बयां'( मेरठ) और ‘मेरी ईज़ा’आदि (मेरठ) द्वारा संपादित हैं। प्रकाशित पुस्तक संग्रह में ‘उत्तराखंड के गौरव’ (मेरठ) भी सम्पादित है। संपादित। इसके अलावा प्रकाशनाधीन दोहे संग्रह ‘त्रिशा’,प्रकाशनाधीन पुस्तक संग्रह ‘देवभूमि उत्तराखंड.’ एवं प्रकाशनाधीन गज़ल संग्रह ‘हुस्ना’ भी है। स्मारिका (कुमाऊँ जनसहयोग समिति) दिल्ली,स्मारिका (ठोसावस्था भौतिक प्रयोगशाला),दिल्ली और मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय पत्रिका ‘यदुवंश गंगा’ आदि से भी जुड़े हैं। दिल्ली में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं और सम्मान भी मिले हैं। सन 2000 में हिन्दी निबन्ध लेखन में प्रशस्ति- पत्र,मिनिस्ट्री आफ डिफेन्स द्वारा सर्टिफिकेट सहित ‘आगमन गौरव सम्मान’(2013),’काव्यदीप सम्मान’,
‘साहित्य प्रेरक सम्मान(2014)’, ‘हिन्दी दिवस सम्मान(2014)’ और
‘बज़्म-ए-जीनत सम्मान’(2015) के रुप में करीब 22 सम्मान मिले हैं। 25 वर्ष से देश के विभिन्न कवि-सम्मेलनों में भागीदारी है तो 10 पुस्तकों की समीक्षा एवं कई की भूमिका पर भी कलम चलाई है।