वो लड़की

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vijay kumar
आज आफिस के लिए घर से निकलने में कुछ देर हो गई तो लगा कहीं आठ बजे वाली बस निकल न गई हो । खै़र, तेज कदमों से चलता बस स्टैंड पहुंचा तो बस चलने ही वाली थी । पहली सीट पर रोज़ की तरह तिवारी जी विराजमान थे । हम दोनों रोज़ एक साथ ही जाते थे । मैं भी उनके बगल में बैठ गया । बस सरकने लगी थी कि तभी वो लड़की कान पर मोबाईल फोन लगाए भागती सी बस में चढ़ी । वो लड़की मैंने इसलिए कहा क्यों कि वो भी रोज़ इसी बस से जाती थी और ऐसे ही फोन लगाए चलती बस में चढ़ती थी । हमारे तकरीबन 45 मिनट के सफर में फोन उसके कान पर लगा ही रहता । यूं तो तिवारी जी को उसके फोन से रोज़ ही चिढ़ होती थी लेकिन आज न जाने क्यों, बोले बिना नहीं रह सके,श् लीजिए, आ गई । आज फिर फोन । इस मोबाईल फोन ने तो आज की पीढ़ी का बिल्कुल सत्यानाष कर दिया है । जिसे देखो हर वक़्त इसी को चिपका हुआ है । ब्वाय फ्रैंड से बात करने से फुरसत मिले तो टाईम पर बस पकड़े न ! रोज़ का यही सीन है इसका ! हुंह ।श्
लड़की ने शायद उनकी बात सुन ली थी । आज की पीढ़ी की थी न । सो फोन बीच में काट कर उनकी ओर मुखातिब होते हुए बोली,श् अंकल, आप मेरे पापा की उम्र के हैं लेकिन फिर भी कहना चाहूंगी कि अगर आप किसी के बारे में नहीं जानते तो यूं ही कुछ नहीं बोलना चाहिए । मैं यहां अपनी किसी रिष्तेदार के पास रहती हूं और नौकरी के लिए, जैसा कि आप देखते ही हैं, रोज़ जाती हूं । प्राईवेट नौकरी है, सो काम का बोझ कुछ ज़्यादा ही रहता है । फिर लौट कर घर का कामकाज भी देखती हूं । सुबह भी घरेलू काम के कारण निकलने में देर हो ही जाती है । मेरे मां-पापा दूसरे शहर में हैं, सो उनसे बात करने के लिए यही एक वक़्त मिलता है । इसलिए आप मुझे रोज़ फोन कान पर लगाए देखते हैं । ज़रुरी नहीं कि फोन पर हर लड़की अपने ब्वाय फ्रैंड से या हर लड़का अपनी गर्ल फ्रैंड से ही बात करे । और भी कई कारण होते हैं । थोड़ा नज़रिया बदलिए अंकल ।श् तिवारी जी फिर कुछ नहीं बोले ।
प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न रचना पूर्णतया मौलिक है और ये कहानी या इसका कोई भी अंष कहीं से भी नहीं चुराया गया है।

#विजय कुमार 
शहर करनाल, हरियाणा
जन्म तिथि 15 अगस्त 1973
शिक्षा बी.ए. एलएल.बी
कार्यक्षेत्र सरकारी कर्मचारी
विधा कहानी 
प्रकाशित पुस्तक लघु कथा संग्रहिका ”इंसाफ”
एक कहानी पर एक लघु फिल्म निर्माणाधीन
एक संघर्षरत कथाकार जो अभी सीखने की प्रक्रिया से गुज़र रहा है और स्थापित होने का प्रयास कर रहा है ।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।