माँ! क्या लिखूँ तुम पर माँ? स्वयं तुम काव्य हो छंदों भरी, कहानी हो व्यथा भरी, संस्मरण हो अपनों के सपनों की। कैसे तुम्हें बांटू मैं? तुमने जिया मुझमें अपना बचपन, जो तुम बाबुल की देहरी पर कमसिन उम्र का छोड़ आई। तुमने सपने संजोकर अपने पूर्ण किये मुझमें, जो […]
काव्यभाषा
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