एक ग़ज़ल

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rajindar bagga

ज़िन्दगी तुझसे पाया बहुत है
पर यार… तूने सताया बहुत है

समंदर की प्यास थी,दिये चंद क़तरे
उस पर भी तूने जताया बहुत है

दी तो ज़रूर तूने दो जून रोटी
पर रात दिन भगाया बहुत है

यह सोचकर, तू कभी तो सुधरेगी
साथ तेरा मैंने निभाया बहुत है

जब भी तुझसे कोई सवाल किया है
जवाबों में तूने उलझाया बहुत है

जिस ने भी तुझको सदाबहार समझा
वो शख़्स बाद में पछताया बहुत है

न बदली तेरी बेवफ़ाई की फितरत
ज़ालिम तुझको आज़माया बहुत है

है कैसी ये हवा आज के दौर की
हर बशर तुझसे , घबराया बहुत है

क्या हुआ जो तूने तन्हा कर दिया
‘राज’ के लिए उसका, साया बहुत है

#राजिन्दर सिंह ‘बग्गा’

नाम :- राजिंदर सिंह ‘बग्गा’
पुत्र :- करतार सिंह ‘बग्गा’
पता : अमृतसर, पंजाब
ग्रैजुएशन की है. एक व्यवसायी हूँ और शौकिया शायरी करता हूँ. गायकी का शौक है मुहम्मद रफी नाईटस में हिस्सा लेता रहता हूँ और हर शनिवार गुरद्वारा में कीर्तन करता हूँ. 70 के दशक में मेरी रचनाएँ (गज़ल और कहानियाँ) दैनिक पंजाब केसरी में प्रकाशित होती रहीं हैं
आजकल फेसबूक पे अपनी रचनाएँ पोस्ट करता हूँ

 

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