प्रकृति की रक्षा कैसे करें ?

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vaidik
आज विश्व-पर्यावरण दिवस है। आज का विश्व किसका बनाया हुआ है ? अमेरिका का। एक भौतिकवादी ओर उपभोगवादी अमेरिका का ! वह भारत को क्या सिखाएगा, पर्यावरण की रक्षा ! उस भारत को, जिसमें बच्चों को सिखाया जाता है कि सूर्यास्त के बाद फूल मत तोड़ लेना, क्योंकि पौधे मनुष्यों की तरह सो जाते हैं। साल में एक दिन भारतीय महिलाएं पेड़ों की परिक्रमा करके उन्हें पूजती हैं। तुलसी के पौधे की तो रोज ही पूजा होती है। वृहदारण्यक उपनिषद में ऋषि याज्ञवल्क्य वृक्षों की तुलना मनुष्य के शरीर से करते हैं। प्रकृति, आत्मा और परमात्मा- इन तीनों तत्वों के संबंधों पर हमारे वेद और दर्शन ग्रंथों की विस्तृत मीमांसा है। वृक्षों की रक्षा के लिए ही राजस्थान के खेजलडी नामक स्थान पर सन 1730 में 363 लोगों ने अपने सिर कटा दिए थे। ये सिर कटानेवाले लोग उस महान संत जम्भेश्वर महाराज के अनुयायी थे, जिन्होंने बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी। इस तर्ज पर 30-40 साल पहले उत्तराखंड में ‘चिपको’ आंदोलन चला था। क्या इस तरह का कोई बलिदान या आंदोलन उन देशों में चला है, जो दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं ? इन राष्ट्रों ने हमें सिर्फ पेड़-पौधों से दुश्मनी करना ही नहीं सिखाया है, उन्होंने प्लास्टिक, पेट्रोल, कोयले के धुंए और डिब्बाबंद जीवन का ऐसा मायाजाल फैलाया है कि अब से तीस-चालीस साल बाद इस दुनिया के करोड़ों लोग शुद्ध पानी पीने और सांस लेने को तरस जाएंगे। सभी दुनिया के लोग हर साल 13 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल करके उसे समुद्रों के हवाले कर देते हैं। हर मिनिट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें फेंकी जाती हैं।  प्लास्टिक की थैलियां निगल जाने के कारण लाखों पशु, पक्षी और समुद्री जीव मौत के घाट उतर जाते हैं। भारत में 15 लाख टन कचरा रोज़ पैदा होता है। पिछले 100 वर्ष में भारत में इतनी बेरहमी से पेड़ काटे गए हैं कि अब जंगल सिर्फ 21.34 प्रतिशत ही रह गए हैं। प्रकृति के इस विनाश का मुकाबला कठोर कानून बनाने और उन्हें निर्ममतापूर्वक लागू करने से होगा। पेड़ों को गिरानेवालों, प्लास्टिक की थैलियों को बनाने, बेचने और इस्तेमाल करनेवालों को कड़ी सजा दी जाए। लोगों को प्रेरित किया जाए कि वे प्लास्टिक की वस्तुओं का कम से कम उपयोग करें। राजनीतिक दल और समाजसेवी संस्थाएं आंदोलन चलाएं और आम लोगों से संकल्प करवाएं। यदि हर व्यक्ति कम से कम 10 पेड़-पौधे लगाने का संकल्प ले ले तो भारत में 1300 करोड़ नए पौधे और पेड़ लहराने लगेंगे। हमारे वैज्ञानिकों को अनुसंधान करके ऐसे उपाय खोज निकालने चाहिए, जिनसे जो प्लास्टिक 1000 साल तक नष्ट नहीं होता, उसे तुरंत खत्म किया जा सके। देश की समस्त राज्य सरकारें लोगों को मुफ्त पौधे दें, बीज दें, खाद दें, सिंचाई की व्यवस्था करे। शाकाहार को बढ़ावा दे। प्रकृति को नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन से घनिष्टतापूर्वक जोड़े।
                                      #डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।