चल दोस्त…

0 0
Read Time2 Minute, 23 Second

sumit

चल दोस्त नदी के किनारे चलें,
भागकर घर से,
छुपते-छुपाते,बरगद तले चलें..
चल दोस्त नदी के किनारे चलें।

वो मुंडेर,जहाँ बीता करते थे
सारे दिन अपने,
बैठ के बुना करते थे बड़े बनने के सपने..
उस सपने की सच्चाई से दूर लौट, अपने बचपन में चलें..
चल दोस्त नदी के किनारे चलें।

वो दरारें स्कूल की,जिन्होंने
सँजोई है यादें अपनी,
वो झुकी ड़ाल बरगद की,
खोली है जिसने बांहें अपनी,
जहाँ हवा की लहरों में,
हमारे बचपन की कहानी चले..
चल दोस्त नदी के किनारे चलें।

हर वक़्त बसंत रहता था जहाँ,
खेत और खलियानों में,
जमती थी सबकी महफिल..
उन खुले मैदानों में,
वो सौंधी-सौंधी गंध गर्म भुट्टों की,
हमें पुकारे चलें..
चल दोस्त नदी के किनारे चलें।

पकड़कर हाथ,
नदियों को पार लगाते थे,
ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से,
फलों को तोड़ लाते थे..
अनजाने पेड़ों पर बसाए हुए वो देव, शायद अब भी वही मिलें..
चल दोस्त नदी के किनारे चलें।

वो दोपहर,रास्ता देखते हमारा,
अब उदास-सी ढल जाती है..
हर शाम आँखों में आँसू लिए,
राह ताकती जाती है..
चल फिर उन रातों को,
चैन की नीदें सुलाने चलें..
चल दोस्त नदी के किनारे चलें।

गाँव के चौक के पंडाल,
जहाँ कितने ही किरदार निभाए..
वो साज ढूंढते हैं हमें,संग जिनके
गीत बचपन के गुनगुनाए,
वो किरदार,वो साज फिर आज
हमें पुकारे,चल चलें..
चल दोस्त,नदी के किनारे चलें।

                                                                     #सुमित अग्रवाल

परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

बहुत गहरे हैं..

Tue Feb 28 , 2017
यहां चेहरे पर भी चेहरे हैं, इंसानी राज बहुत गहरे हैं। दिल में आग लब पर गुलाब, लोग न जाने कहाँ आ ठहरे हैं। हाथ मिलाते हैं गर्मजोशी से, पर दिल में नफरत के बसेरे हैं। बोलते कुछ और करते हैं कुछ, लोगों के मिज़ाज़ यहां दोहरे हैं। इंसाफ के […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।