धूप दुपहरी

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ramesh
सूरज आग उगलता जाए, आग की आंधी चलती है।
धू-धू करके दिन जलता है, ‘निर्झर’ रात सुलगती है ।।
जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, बढ़ती जाती  है गर्मी।
तन पर कपड़े सहे न जाएं,न पहने तो बेशर्मी ।।
धूप दुपहरी का क्या कहना,छाया में भी चैन नहीं।
जो तन-मन को शीतल कर दे,निर्झर अब वो रैन नहीं।।
नैनों पर ऐनक चढ़ बैठी, सर पर गमछा टोपी है।
या फिर छाता लिए हाथ में,बाहर निकले जो भी है ।।
नदियां सब रेतीली हो गई, कीचड़ वाला हुआ तालाब ।
निर्झर सूखे कुंआ बावड़ी, कैसे हंसता रहे गुलाब।।
खलिहानों में आग लग गई,जली गोदामें शहरों की।
जिनका पानी कभी न सूखा, काई सूख गई नहरों की।।
करते जो परवाज गगन में,पंख सभी के झुलसे जाते।
दिख जाता उस बीच सरोवर, नीर नहाते प्यास बुझाते।।
आए  हो गर धूप से, ‘निर्झर’ सावधान।
पहले कुछ खा लीजए , फिर कीजिए जलपान।।

                                                                #रमेश शर्मा ‘निर्झर’

परिचय  : रमेश शर्मा ‘निर्झर’ चांदामेटा निवासी हैं तथा बैंक आॅफ महाराष्ट्र परासिया में सेवारत हैं। गद्य व पद्य दोनों लेखन में रुचि है। वर्तमान में श्रीमद् भागवद्गीता का पद्यानुवाद राधेश्याम धुन में पूर्ण कर चुके हैं।

matruadmin

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