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आशा से देखती है वह आँखें
नम करदेती हैं मन
बिस्तर पर लेटे पिता के
उम्र की तलहटी पर पहुंच कर
कुछ वक्त का माँग करती है बच्चों से।
कुछ अनगिनत सवालों का
जवाब माँगते हुए।
अपना सब कुछ सौंपा है तुम्हें
वक्त, मेहनत, जवानी वृद्धाप्य
क्या अब तुम्हारे पास
कुछ वक्त है हमारे लिए?
जब तुम्हें जन्म देने
तुम्हारी माँ अस्पताल की बेड
पर दर्द से कहार रही थी
और मैं बेबस वार्ड के
दहलीज पर इधर उधर
भटक रहा था।
मन के भय और खुशी
मिश्रित भावों को संभालना
बड़ी मुश्किल था,
वह घड़ी हम दोनों के लिये
परीक्षा की घड़ी थी
इस परीक्षा का फल
हमें हमारी वृद्धाप्य में
मिलने वाला था क्यों कि
बच्चे बुढ़ापे का सहारा होते हैं।
चाहे तुम बेटी होती या बेटा
हमारे जीवन में अनमोल
मोती की प्रतीक ही रहोगे।
आशा थी कि तुम
हमारे दिल का दीपक बन
हमारे आँगन के दहलीज़ पर
अपनी नरम से पैरों से
कुचलते हमारे संस्कृति को
आगे बढ़ाओगे।
नन्हें कदमों से जब तुम
छाती पर प्रहार करते थे
हम खिल उठते थे खुशी से।
सच मानो जब तुम पहली बार
धरती पर पैर रखा था
उस पल कितना अनमोल था
हमारे लिए, हर कदम पर
कई तस्वीरें खींची थी और
हर दिन उत्सव मनाया था हमने।
तेरी माँ रात रात भर जाग कर
डाइपर बदला करती थी,
नींद आँखों में ही दम तोड़ देते थे
जानते हो, जब पहली बार
डाइपर खरीदने हम बाजार गये थे
मानो तुम्हारी माँ एक घंटे तक
डाइपर खंगालती रही
ये लेती फिर वह उठाती
पूछती थी कहीं डाइपर की
खुरदुरी कपड़े से बच्चे की शरीर पर
छाले न पड़ जाए।
याद आता है वह सब बातें
दाई माँ के मालिस करते वक्त
तुम्हें रोते देख तड़प जाती थी,
जब वह टीका दिलवाने
अस्पताल ले जाती थी
सुई तुम्हें चुभने से पहले
वह खुद रो पड़ती थी
लेकिन तुम्हें दुनिया में
हर मुश्किलों को आसानी से
पार कराने के यह सब
सहना और तुम्हें
सख्त बनाना भी जरूरी था।
याद है तुम्हें
जब तुम पहली बार स्कूल गये थे
तुम माँ की आँचल को
कशकर पकड़े रखा था,
स्कूल न जाने की जिद्द थी
लेकिन तुम्हें टीचर के हाथ
स्कूल के ए.सी कमरे में छोड़ कर
कई दिनों तक वह खुद
तुम्हारी स्कूल की चौखट पर
पेड़ की साये घंटों बैठी रहती थी
सिर्फ इसलिए कि
कहीं तुम माँ को ढूँढने न लगो।
पर पगली है वह
उसे क्या पता था
उम्र की सीढियों पर
तुम उसे अकेले छोड़कर
अपने आप में मशहूर हो जाओगे।
बेटा, हमारे उम्र के साथ
हर पल, हर खुशी और
मेहनत की सारी पूंजी
सब कुछ सौंप दी है तुम्हें
बदले में सिर्फ इतना वादा करदो कि
हमारे लिये कुछ वक्त दोगे
हमें सम्मान दोगे और
हमें बच्चों से संभालोगे।
जैसे हमने संभाले थे तुम्हें
पूरी शिद्दत से
पल पल गुजारे थे
तुम्हारे आने के इंतज़ार में
जब तुम्हारी माँ
पाल रही थी तुम्हें पेट में,
तब तुम बड़े हो रहे थे
मेरे दिल और दिमाग में
तब जाके एक शरीर
जन्मा था इस धरती पर।
तुम्हारे भविष्य सँवारने
पाई पाई जोड़े थे हमने
अपने खर्च को नज़रंदाज़ कर
तुम्हारी पढ़ाई के लिए।
अब हम लाचार हैं
उम्र की तलहटी पर बेबस खड़े हैं
देख रहे हैं जिंदगी के उन पलों को
जो हमनें तुम्हारी ममता में
त्याग दिये थे कई खुशियों के पल
तुम्हारी नन्हे से
कदमों के नीचे, तुम्हारी
एक मुस्कुराहट की झलक पाने।
शिशु जवानी प्रौढ़ावस्था
और वृद्धाप्य के बाद
अब हम उसी स्थिति में हैं
जिसमें तुम पलँग पर
मलमूत्र विसर्जन करते थे
और हम खुशी से
बिना कोई हिचकिचाहट
उसे साफ़ करते थे।
अब ये वक्त हमारा है
और जिम्मेदारी तुम्हारी
हम तुमसे वह वक्त माँगते हैं
वह पोषण माँगते हैं
जिंदगी लेन देन का
वजह मात्र बन गया है
अब वह वक्त तुम हमें देदो
वह सेवा जतन हमें दो
कभी हम माता पिता थे
मगर अब हम बच्चे से हैं
हमें तुम्हारी गोद की जरूरत है
प्यार मुहब्बत की जरूरत है।
हम तुम्हारे चेहरे पर वही खुशी
देखना चाहते हैं
जो एक पिता माता को अपने
बच्चे के जन्म के बाद होती है,
उतने ही दिल से
तुम्हारा प्यार ममता चाहिये
जिस तरह हमने निभाये थे।
क्या दे पाओगे हमारी आखिरी वक्त में
तुम्हारी अमूल्य जिंदगी से
कुछ वक्त की कुर्बानी?
उम्र के आखिरी पढ़ाव में
हमारे साथ निभाने की
क्या उस ममता का ऋण को
चुका पाओगे उसी सिद्दत से
जिस सिद्दत से हमनें तुम्हें
दिल से लगाकर रखा था।
#लता तेजेश्वर ‘रेणुका’
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बहुत खूब लिखा है। बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं लता जी।