हिंसा की आग में
कैसी यह सोच
तोड़कर पूर्वजों की मूर्तियां
जता रहे अफसोस।
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नफरतों के दौर
इतने न बढ़ने पाए
सलामत रहे जिन्दगी
दुआ सलाम फरमाए।
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जीवन के कालचक्र
सभी को उलझाए
आसमान में उड़ने वाले
एक दिन जमी पर आए ।
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सब दिन न रहे समान
बडे बुजुर्ग फरमाए
जैसी करनी नित करे
वैसे ही फल पाए।
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आ रहा वक्त अब
सब नतीजा बतलाए
जिसने किये है नेकी
फल वही पाए।
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फैलता उजाला देखकर
मन हर्षित हो जाए
अंधकरो की अभिलाषा जिन्हें
वो परपंच रचि जाए।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति