गंगा दूषित हो जाएगी,लज्जित होते भूप मिलेंगे
कलयुग में न जाने कितने,जयचंदों के रूप मिलेंगे।
सब मनु रोगी हो जाएंगे,सैनिक लोभी हो जाएंगे,
नित्य नए नव धर्म चलेंगे,साधु भोगी हो जाएंगे।
सागर को उपदेशित करते,जग के सारे कूप मिलेंगे,
कलयुग में न जाने कितने,जयचंदों के रूप मिलेंगे।
ज्ञानी मौन रहेंगे जग में,अनपढ़ ज्ञानी हो जाएंगे,
सत्तालोभी,कपटी,द्रोही,सब अभिमानी हो जाएंगे।
भोली जनता को छलने को,नित्य नए प्रारूप मिलेंगे,
कलयुग में न जाने कितने,जयचंदों के रूप मिलेंगे।
विध्यारुपा शोषित होगी,मंचों पर लक्ष्मी छाएगी,
मर्यादा का मोल न होगा,लज्जा को लज्जा आएगी।
लालच होगा सबसे ऊपर,सब इसके अनुरुप मिलेंगे,
कलयुग में न जाने कितने,जयचंदों के रूप मिलेंगे।
धोखा देकर जीत मिलेगी,दुष्टों के घर मीत मिलेंगे,
चारण हो जाएंगे सब कवि,रचते वन्दन गीत मिलेंगे।
झूठ पुरस्कृत होगा जग में,सत्य सदा विद्रूप मिलेंगे,
कलयुग में न जाने कितने,जयचंदों के रूप मिलेंगे।
#डॉ.अभिवृत अक्षांश
परिचय : डॉ.अभिवृत अक्षांश कवि,लेखक और विचारक के रुप में हिन्दी में शानदार लेखन करते हैं। आप हिन्दी सेवा समिति के अध्यक्ष भी हैं।