चलो हम सजाएं धरा से गगन तक,
खुशियाँ बिछाएं धरा से गगन तक।
रुकेंगे न अब हाथ मरु में सृजन तक,
बिखेरेंगे खुशबू धरा से गगन तक।
पढ़ा तुमने गीता कुरान और बाईबल,
पढ़ा हमने केवल धरा से गगन तक।
नफरत हमारी रगों में नहीं है,
पूजा सभी को है सर से चरण तक।
सन्देह तेरा मिटाने की जिद में,
दिये खोल मन के सभी आवरण तक।
प्रदूषण हवा में घुला इस तरह है,
धुआँ ही धुआँ है धरा से गगन तक।
अगर शीघ्रता से न रोका गया तो,
बिखर जाएगा विष खिलते चमन तक।
भरती सभी घाव बाहर के मरहम,
मगर नेह हरता है मन से जलन तक।
चलो भेद की गांठ मन से हटा दें,
बहे प्रेम ‘निर्झर’ धरा से गगन तक।
#रमेश शर्मा ‘निर्झर’
परिचय : रमेश शर्मा ‘निर्झर’ चांदामेटा निवासी हैं तथा बैंक आॅफ महाराष्ट्र परासिया में सेवारत हैं। गद्य व पद्य दोनों लेखन में रुचि है। वर्तमान में श्रीमद् भागवद्गीता का पद्यानुवाद राधेश्याम धुन में पूर्ण कर चुके हैं।