माँ का बंटवारा

0 0
Read Time5 Minute, 4 Second

hemendra

मदर डे विशेष आलेख……………
माँ है तो हम है, हम है तो जहान हैं। मॉं की छाव से बडी कोई दुनिया नहीं। मॉं के चरणों में जन्नत हैं, और उस जन्नत की मन्नत सदा-सर्वदा हम पर आसिन हैं। मॉं की बरकत कभी भेदभाव नहीं करती वह समान रूप से सभी बच्चों पर बरसती हैं। मॉं के लिए कोई औलाद तेरी-मेरी नहीं बल्कि मेरी ही होती हैं। एक माँ के आंचल में सब बच्चे समा जाते हैं पर सब बच्चों के हाथों में एक मॉं नहीं समा सकती, इसीलिए मेरी मॉं, तेरी मॉं की किरकिरी में मॉं परायी हो जाती हैं। क्यां मॉं का भी बंटवारा हो सकता हैं आज मेरी तो कल तेरी और परसों किसी की नहीं। हालात तो बंटवारे की हामी भरते है बानगी में वक्त के साथ-साथ खून का अटूट बंधन ममता के लिए मोहताज हो जाता हैं। मॉं बेटा-बेटा कहती हैं और बेटा टाटा-टाटा कहता हैं।
वाह! रे जमाना तेरी हद हो गई जिसने दुनिया दिखाई वह सरदर्द होकर तोल मोल के चक्कर में बेघर हो गई। यह एक चिंता की बात नहीं वरन् चिंतन की बात हैं कि आखिर ऐसा क्यों और किस लिए हो रहा है? इसका निदान ढूंढे नहीं मिल रहा है या ढूंढना नहीं चाहते हैं। चाहे जो भी इस वितृष्णा में दूध का कर्ज मर्ज बनते जा रहा है जो एक दिन नासुर बनकर मानवता को तार-तार कर देगा, तब हमें अहसास होगा कि माता,  कुमाता नहीं हो सकती अपितु सपूत कपूत हो सकते हैं।
बहरहाल, पूत के पांव जब पालने में होते है तब से वो मॉं, मॉं की मधुर गुजांर से सारे जग को अलौकिक कर देता हैं। अपनी मॉं के लिए रोता हैं, बिलकता हैं और तडपता हैं मॉं की गोद में बैठकर निवाला निगलता हैं। उसे तो चहुंओर मात्र दिखाई पडती है तो अपनी मॉं  और मॉं, मॉं कहकर अपनी मॉं पर अपना हक जताता हैं। यही ममतामयी माया मॉं-बेटे के अनमोल रिश्ते का बेजोड मिलन हैं। लगता है यह कभी टूटेगा नहीं पर काल की काली छाया इस पवित्र बंधन को जार-जार करने में कोई कोर कसर नहीं छोडती। देखते ही देखते मेरी मॉं, तेरी मॉं और दर-दर की मॉं बन जाती हैं।
दरअसल, जवान जब आधुनिक व भौतिकी उलझन में नफा-नुकसान का ख्याल करते है। तब बूढे मॉं-बाप बेकाम की चीज बनकर बोझ लगने लगते हैं। जब इनसे कोई फायदा नही तो इन्हें पालने का क्यां मतलब? जिसने कोख में पाला उसकी छाया बुरी है।  इसी मानस्किता को अख्तियार किये तथाकथित बेपरवाह खूदगर्ज अपनी जननी को तेरी मॉं-तेरी मॉं बोलकर अपनी जिम्मेदारियों से छूटकारा चाहते है। वीभत्स चौथे पहर में पनाह देने के बजाय वृद्धाश्रम में ढकेल कर या कूड-कूडकर जीने के लिए हाथों में भीख का कटोरा थमा देते है। जहां वह बूढी मॉं मेरे बेटे-मेरे बेटे की करहाट में दम तोडने लगती हैं कि कब मेरा बेटा आएगा और प्यार से दो बूंद पानी पिलाएंगा।
हां! ऐसे कम्बखतों को फिक्र होगी भी कैसे! कि मॉं के बिना जीना कैसा। जा के पूछे उनसे जिनकी मॉं नहीं है! वे तुम्हें बताएगें कि मॉं होती क्या है! और नसीब वाले भाई-भाई लडते हो कि मॉं तेरी हैं, मॉं तेरी हैं। यह कौन सा इंसाफ है कि बचपन में मॉं मेरी और जवानी मॉं तेरी! तेरी नही तो फिर बूढी मॉं किसकी! अच्छा नहीं होगा कि मॉं को हम अपनी ही रखे क्योंकि मॉं तो मॉं होती है तेरी ना मेरी चाहे वह जन्म देने वाली हो या पालने वाली किवां धरती मॉं हो। वह तो हमेशा बच्चों का दुःख हर लेती है और सुख देती हैं। तो क्या हम उस मॉं को जिदंगी के अंतिम पडाव में बांट दे या सुख के दो निवाले और मीठे बोल अर्पित कर दे। ये जिम्मेदारी अब हमारी है पेट मे सुलाने वाली मॉ को पैरों में सुलाये या उसके पैरों को दबाये। समर्पित, स्मरणित अभिज्ञान माँ के हिस्से नहीं होते अपितु माँ के  हिस्से में हम रहते है ।
       #हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

मां तेरा उपकार है

Mon May 14 , 2018
विश्व मातृदिवस विशेष जन्म दिया तूने ये मुझ पर उपकार है, मां मेरी तू जग में सबसे महान है। तेरे आँचल की छांव में खेला, पाई जग में खुशियां मेने सारी। सदियों से धरा पर तेरा ही गुणगान है, तुझसा न दुनियां में और कोई नाम है। लक्ष्मी ,दुर्गा और […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।